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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । । (३२५) भजन्तेऽत्यङ्गसौरस्यायं यूकामक्षिकादयः॥ त्यजन्ति वाऽतिवैरस्यात्सोऽपि वर्ष न जीवति ॥ २५॥ सततोष्मसु गात्रेषु शैत्यं यस्योपलक्ष्यते ॥शीतेषु भृशमौष्ण्यं वा स्वेदः स्तम्भोऽप्यहेतुकः ॥ २६ ॥ यो जातशीतपिटिकः शीताङ्गो वा विदह्यते ॥ उष्णद्वेषी च शीतार्तः स प्रेताधिपगोचरः॥ २७ ॥ उरस्यूष्मा भवेद्यस्य जठरे चातिशीतता ॥ भिन्नं पुरीषं तृष्णा च यथा प्रेतस्तथैव सः ॥ २८॥ मूत्रं पुरीषं निष्टयूतं शुक्र वाप्मु निमज्जति ॥ निष्ठयूतं बहुवर्णं वा यस्य मासात्स नश्यति ॥२९॥ अंगोंके अत्यंत सुरसपनेसे जिस मनुष्यके जूम और माखीआदि सेवित करें अथवा विरसपनेसे त्यागें वह मनुष्य एकवर्षतक नहीं जीवता ॥ २५ ॥ जिस मनुष्यके निरंतर गरमहुये अंगमें शीतलता प्राप्त होवे और अत्यंत शीतलहुये अंगमें उष्णता प्राप्त होवे और हेतुके विना पसीना तथा पसीनासंबंधी स्तंभ उपजै वह मनुष्य एकवर्षतक नहीं जीवता है ॥ २६ ॥ शीतलरूप फुन्सियोंसे संयुक्त और शीतल अंगोंवाला ऐसा मनुष्य दाहको प्राप्तहोवे अथवा शीतसे पीडित हुका मनुष्य गरम पदार्थसे भय करै वह मनुष्य निश्चय मरजाता है ॥ २७ ॥ और जिस मनुष्यकी छातीमें गरमाई हो और पेटमें शीतलता हो और भिन्नरूप विष्ठा हो और तृषा हो ऐसा मनुष्य निश्चय मरे ॥२८ ।। जिस मनुष्यका मूत्र विष्टा, थूक, वीर्य ये जलमें डूब जावे अथवा बहुत वर्णोंवाला थूकना हो वह मनुष्य एकमहीनेमें मरता है ॥ २९ ॥ घनीभूतमिवाकाशमाकाशमिव यो घनम् ॥ अमूर्त्तमिव मूर्तञ्च मूर्त चाऽमूर्त्तवत्स्थितम् ॥ ३०॥ तेजस्व्यतेजस्तद्वच्च शुक्लं कृष्णमसच्च सत् ॥ अनेत्ररोगश्चन्द्रं च बहुरूपमला छनम् ॥३१॥जाग्रद्रक्षांसि गन्धर्वान्प्रेतानन्यांश्च तद्विधान्॥ रूपं व्याकृति तद्वच्च यः पश्यति स नश्यति ॥ ३२॥ सप्तर्षीणां समीपस्थां यो न पश्यत्यरुन्धतीम् ॥ ध्रुवमाकाशगङ्गां वा न स पश्यति तां समाम् ॥ ३३॥ जो मनुष्य आकाशआदिको घनरूप जाने और घनपदार्थको आकाशकी तरह माने और मूर्तिमानको नहीं मूर्तिमान्की तरह देखै ऐसा मनुष्य निश्चय मरै ॥ ३० ॥ जो तेजवाले पदार्थको विनातेजवाला देखै और शुक्लको कृष्णके समान देखै और सत्पदार्थको असत्पदार्थकी तरह देख ऐसा मनुष्य निश्चय मरता है और नहीं नेत्रमें रोगवाला मनुष्य बहुत रूपवाला कलंकसे रहित For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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