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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( १८२ ) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मष्टाङ्गहृदये इति स्नेहैस्त्रिचतुरैः स्निग्धे स्रोतोविशुद्धये ॥ निरूहं शोधनं युञ्ज्यादस्निग्धे स्नेहनं तनोः ॥ ३५ ॥ ऐसे पूर्वोक्त प्रकार करके तीन और चारवार स्नेहोंसे स्निग्ध हुये मनुष्यको जानकर पीछे नाडी के खातों की शुद्धिके अर्थ निरूहरूप शोधनको प्रयुक्त करै और जो स्निग्ध मनुष्य होवे तो शरीके अर्थ स्नेहको प्रयुक्त करै ॥ ३५ ॥ पञ्चमेऽथ तृतीये वा दिवसे साधके शुभे ॥ मध्याह्ने किञ्चिदावृत्ते प्रयुक्ते वलिमङ्गले ॥ ३६ ॥ पश्चात् अनुवासनके अनंतर साधक और शुभरूप पांच में अथवा तीसरे दिनमें कछुक आच्छादित और बलि तथा मंगलों करके संयुक्त मध्याह्न दुपहर के समयमें ॥ ३६ ॥ अभ्यक्तखेदितोत्सृष्टमलं नातिबुभुक्षितम् ॥ अवेक्ष्य पुरुषं दोषभेषजादीनि चादरात् ॥ ३७ ॥ अभ्यंगको किये हुये और पसीनेको लियेहुये और मलको त्यागेहुये और कछुक भोजन करनेकी इच्छावाले ऐसे मनुष्यको देखकर दोष तथा औषधआदिको जानकर आदरसे ॥ ३७ ॥ वस्ति प्रकल्पयेद्वैद्य स्तद्विधैर्बहुभिः सह ॥ क्वाथयेद्विंशतिपलं द्रव्यस्याष्टौ पलानि च ॥ ३८ ॥ बहुत से बस्तिकर्मको जाननेवाले विद्वानोंके संग कुशल वैद्य बस्तिको कल्पित करें और द्रव्य ८० तोले और मैनफल ८ तोले इन्होंको सोलहगुने पानी में मिलाप कराये जब चतुर्थीश शेष रहे तब तिस कायको उतारै ॥ ३८ ॥ ततः काथाच्चतुर्थांशं स्नेहं वाते प्रकल्पयेत् ॥ पित्ते स्वस्थे च षष्ठांशमष्टमांशं कफाधिके ॥ ३९ ॥ पीछे काथसे चौथा हिस्सा स्नेहको वातरोग में प्रकल्पित करे और पित्तज रोग में और स्वस्थ मनुष्य के अर्थ छठे भाग तैलको प्रकल्पित करें और कफकी अधिकतावाले रोगमें आठमें भागसे तेलको प्रकल्पित करै ॥ ३९ ॥ सर्वत्र चाष्टमं भागं कल्काद्भवति वा यथा ॥ नात्यच्छसान्द्रता वस्तेः पलमात्रं गुडस्य च ॥ ४० ॥ और वात, पित्त, कफसे उपजे रोगों में कल्कसे आठमां हिस्सा तेलको प्रकल्पित करे और जैसे बस्तिका स्वच्छपना और घनपना नहीं होसकै तैसे कल्ककी कल्पना करनी और ४ तोले भर गुडी कल्पना करनी और निरूहकी मात्रा ९६ तोलेभर द्रव्यकी है यह जानो ॥ ४० ॥ मधुपदादिशेषञ्च युक्त्या सर्वं तदेकतः ॥ उष्णाम्बु कुम्भीवाष्पेण तसं खजसमाहतम् ॥ ४१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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