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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। (१८३) और इसमें शहद और नमकआदि पदार्थ युक्तिकरके मिलाने अर्थात् शहद १६ तोले सेंधानमक १ तोला, जवाखार १ तोला ऐसे मिलाने और कोठीकी भांफोंकरके तप्त और खज अर्थात् काठकी करछीसे चलायेहुए कछुक गरम किये पानीको ॥ ४१ ॥ प्रक्षिप्य बस्तौ प्रणयेत्पायौ नात्युष्णशीतलम् ॥ नातिस्निग्धं नवा रूक्षं नाति तीक्ष्णं नवा मृदु ॥४२॥ बस्तिमें डालकर पीछे गुदामें प्राप्त करें और न अति गरम और न अति शीतल और न अति चिकना और न अति रूखा और न अति तक्षिण और न अति कोमल ॥ ४२ ॥ नात्यच्छसान्द्रं नो नातिमात्रं नापटु नाति च ॥ लवणं तद्वदम्लं च पठन्त्यन्ये तु तद्विदः॥४३॥ आर न अति स्वच्छ और न अति धन और न अति अल्प और न अति बहुत आर न अत्यंत अल्परूप नमकसे संयुक्त और न अति नमकसे संयुक्त और न अति अम्लरूप पानीको बस्तिके द्वारा गुदामें प्राप्त करै, ऐसे बस्तिकर्मको जाननेवाले अन्य वैद्य कहते हैं ॥ ४३ ।। मात्रां त्रिपलिकां कुर्यात्स्नेहमाक्षिकयोः पृथक् ॥ कर्षाध माणिमन्थस्य स्वस्थे कल्कपलद्वयम् ॥ ४४ ॥ स्नेह और शहदको पृथक् पृथक् बारह बारह तोलेभर लेवै और सेंधानमक ६ मासे और कल्क ८ तोले लेवै ॥ ४४ ॥ सर्वद्रवाणां शेषाणां पलानि दश कल्पयेत् ॥ माक्षिकं लवणं स्नेहं कल्क क्वाथमिति क्रमात् ॥ ४५ ॥ शेष रहे सब द्रवोंको ४० तोलेभर लेबै पीछे प्रथम खरलमें शहदको डाल मर्दित करै पीछे । तिसमें सेंधानमक मिलाकर मेलित करै फिर लवणको मर्दित करके मिश्रित करै, पीछे स्नेह, पीछे कल्क, पीछे क्वाथको क्रमसे मिलावै ॥ ४५ ॥ आवपेत निरूहाणामेष संयोजने विधिः ॥ उत्ताने दत्तमात्रे तु निरूहे तन्मना भवेत्॥ ४६॥ निरूहके द्रव्योंको मिलानेकी विधि है और निरूहबस्तिको देनेमें सीधीतरह हुआ मनुष्य निरूहके वेगोंमेंही मनको लगानेवाला होवे ॥ ४६॥ कृतोपधानः सञ्जातवेगश्चोत्कटकः सृजेत् ॥ आगतौ परमः कालो मुहूतों मृत्यवे परम् ॥४७॥ तकियेको धारण कियेहुये प्राप्त वेगोंवाला, उत्कट आसनमें स्थित वह मनुष्य वेगोंको त्याग For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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