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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) अष्टाङ्गहृदयेशीतेन कोपमुष्णेन शमं स्निग्धादयो गुणाः॥ शीतेन युक्तास्तीक्ष्णाद्याश्चयं पित्तस्य कुर्वते ॥ २० ॥ और शीतल गुणकरके युक्तहुये रूक्षआदि गुण वायुको कोपित करते हैं और उष्ण गुणकरके संयुक्त हुये स्निग्धआदि गुण वायुको शांत करते हैं, और शीतल गुणकरके युक्त हुये तीक्ष्णआदि गुण पित्तके संचयको करते हैं ॥ २० ॥ . उष्णेन कोपं मन्दाद्याः शमं शीतोपसंहिताः॥ शीतेन युक्ताः स्निग्धाद्याः कुर्वते श्लेष्मणश्चयम् ॥२१॥ और उष्ण गुणकरके संयुक्त किये तीक्ष्णआदि गुण पित्तको कुपित करते है,और शीतगुणकरके संयुक्त हुये मंदआदि गुण पित्तको शांत करते हैं, और शीतगुणकरके संयुक्त हुये स्निग्ध आदिगुण कफके संचयको करते हैं ॥ २१ ॥ उष्णेन कोपं तेनैव गुणा रूक्षादयः शमम् ॥ चयो वृद्धिः स्वधाम्न्येव प्रद्वेषो वृद्धिहेतुषु ॥२२॥ और उष्ण गुणकरके युक्त हुये स्निग्धआदि गुण कफको कुपित करते हैं और उग गुणकरके युक्त हुये रूक्षआदि गुण पित्तको शांत करते हैं, अपने स्थानमें जो दोपकी वृद्धि होती है तिसको चय कहते हैं और वृद्धिके हेतुओंमें वैरभाव ॥ २२ ॥ विपरीतगुणेच्छा च कोपस्तून्मार्गगामिता॥ लिङ्गानां दर्शनं स्वेषामस्वास्थ्यं रोगसम्भवः ॥ २३॥ और विपरीत गुणोंकी इच्छा, और अपने स्थानको त्यागकर फिर मार्गानरमें गमन करना कोप कहाता है और अपने अपने लिंगोंकी उपलब्धि होनी और स्वस्थपनाका अभाव हो जाना यह रोगसंभव कहाता है ॥ २३ ॥ चयप्रकोपप्रशमा वायोर्गीष्मादिषु त्रिष॥ वर्षादिषु तु पित्तस्य श्लेष्मणः शिशिरादिषु ॥२४॥ प्रष्मि-वर्षा-शरद् इन तीन ऋतुओंमें क्रमसे वायुके चय--कोप-शम होतेहैं और वर्षा-शरद्हेमंत इन तीन ऋतुओंमें क्रमसे पित्तका चय--कोप-शांति ये होतेहैं और शिशिर--संत-ग्रीष्म. इन तीन ऋतुओंमें क्रमसे कफका चय-कोप-शांति होतेहैं ॥ २४ ॥ चीयते लघुरूक्षाभिरोषधीभिः समीरणः॥ तद्विधस्तद्विधे देहे कालस्योष्ण्यान्न कुप्यति ॥२५॥ प्रष्मिऋतुमें हलके और रूखे देहमें हलकी और रूखी आदि औषधियोंकरके आयुका चय होताहै परंतु तिसे प्रष्मिऋतुमें उष्णता होनेसे वह वायु कोएको प्राप्त नहीं होता ॥ २५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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