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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) . . अष्टाङ्गहृदये__पीछेस नमकके रसको देते हैं, और पाकमें कटु है, और मांसको बढाते हैं, और पुरानी बवासीर-ग्रहणी दोष-शोष–इन्होंकरके पीडित मनुष्योंको अति हित है ॥ ६१ ॥ नातिशीतं गुरु स्निग्धं मांसमाजमदोषलम् ॥ शरीरधातुसामान्यादनभिष्यन्दि बृंहणम् ॥ ६२ ॥ बकरेका मांस अतिशीतल नहीं है, भारी है चिकना है दोषोंको नहीं उपजाता है, और शरीर तथा धातुके सामान्यपनेसे कफको नहीं करता है, और धातुओंको बढाता है ।। ६२ ॥ विपरीतमतो ज्ञेयमाविकं बृहणं तु तत् ॥ शुष्ककासश्रमात्यग्निविषमज्वरपीनसान् ॥ ६३ ॥ और इससे विपरीत गुणोंवाला भेडका मांस है, परंतु धातुओंको बढाताहै, और सूखी खांसी परिश्रम-आतेअग्नि-विषमज्वर-पीनस ॥ ६३ ।। कार्य केवलवातांश्च गोमांसं सन्नियच्छति ॥ उष्णो गरीयान्महिषः स्वप्नदायबृहत्त्वकृत् ॥ ६४ ॥ कार्य केवल वातरोगको गायका मांस दूर करता है, भैंसका मांस गरम है और अति भारी है और शयन-दृढपना- स्थूलपना-इन्होंको करता है ॥ ६४ ॥ तद्वद्वराहः श्रमहा रुचिशुक्रवलप्रदः॥ मत्स्याः परं कफकराःचिलिचीमस्त्रिदोषकृत् ॥६५॥ ऐसेही गुणोंवाला शूकरका मांसहै परंतु श्रमको नाशता है और रुचि-वीर्य-वल-को देता है, और मछलियां कझको करती हैं, तिन्होंमें चिलिचिमसंज्ञक मछली त्रिदोषको करती है ॥ १५ ॥ लावरोहितगोधैणाः स्वे स्वे वर्गे वराः परम् ॥ मांसं सद्यो हतं शुद्धं वयस्थं च भजेत्यजेत् ॥६६॥ विष्किरपक्षियोंमें लावा तीतर श्रेष्ठ है, और मछलियोंमें रोहित मछली श्रेष्ठ है, और बिलेशय जीवोंमें गोधा श्रेष्ठ है, और मृगोंमें एण मृग श्रेष्ठ है, और तत्काल मारेहुए और नसआदि करके रहित जवान अवस्थावाले जीवके मांसको सेवै ॥ ६६ ॥ मृतं कृशं भृशं मेयं व्याधिवारिविषैर्हतम् ॥ . पुंस्त्रियोः पूर्वपश्चार्द्ध गुरुणी गर्भिणी गुरुः ॥ ६७ ॥ और आपही मरे हुये प्राणीके मांसको त्यागै, और दुर्बलमांसको त्यागै, और अतिमेदसे संयुक्त मांसको त्यागै, और रोग- पानी-विष-करके हतहुये प्राणीके मांसको त्यागै, पुरुषके शरीरका पूर्वार्द्ध भारी है, और स्त्रीके शरीरका पश्चिमाई भारीहै, और इन्होंके पूर्व और पश्चिम भागोंके मांस भारीहैं और गर्भवालीका मांस भारी है ।। ६७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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