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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकाससेतम् । (६३) खरगोश शशा दीपन है पाकमें कटु है स्तंभन है रूखा है और शीतल है और वर्तकसे लगायकर जांगल जीवोंकी समाप्तितक सब जीव कछुक गरम हैं भारी हैं चिकने हैं और धातुओंको बढातेहै ॥ ५५ ॥ तित्तिरिस्तेष्वपि वरो मेधाग्निवलशुक्रकृत् ॥ ग्राही वर्योऽनिलोद्रिक्तसन्निपातहरः परम् ॥ ५६ ॥ तिन्होंमें तीतर श्रेष्ठ है और बुद्धि-अग्नि-बल-वीर्य-को करता है, स्तंभन है वर्णमें हित है और वाताधिक सन्निपातको हरता है ॥ ५६ ॥ नातिपथ्यः शिखी पथ्यः श्रोत्रस्वरवयोदृशाम् ॥ तद्वच्च कुक्कुटो वृष्यो ग्राम्यस्तु श्लेष्मलो गुरुः ॥ ५७ ॥ ___ मोर अतिपथ्य नहीं है परंतु कान-स्वर-अवस्था दृष्टि-इन विकारवालोंको पथ्य है और मुरगाभी मोरके समान गुणोंवाला है, परंतु वीर्यको बढाता है, और गाममें रहनेवाला मुरगा कफको करता है और भारी है ॥ १७ ॥ मेधानलकरा हृद्याः क्रकराः सोपचक्रकाः॥ गुरुः सलवणः काणकपोतः सर्वदोषकृत् ॥ ५८॥ ककर अर्थात् करेटु भेद और उपचक्रक बुद्धि और अग्निको करता है, और काणकपोत भारी है सलोना है और सब प्रकारके दोषोंको करता है ॥ १८ ॥ चटकाः श्लेष्मलाः स्निग्धा वातघ्नाः शुक्रलाः परम् ॥ गुरूष्णस्निग्धमधुरा वर्गाश्चातो यथोत्तरम् ॥ ५९ ॥ चटक अर्थात् चिडे कफको करते हैं चिकने है वातको नाशते हैं, और वीर्यको अतिशय बढाते हैं और इसके अनंतर बिलेशय आदि वर्गके जीव उत्तरोत्तर क्रमसे भारीपन गरमपन चिकनापन मधुरपनसे अधिक हैं ॥ ५९॥ मूत्रशुक्रकृतो बल्या वातनाः कफपित्तलाः॥ शीता महामृगास्तेषु क्रव्यादाः प्रसहाः पुनः॥६०॥ और उत्तरोत्तर क्रमसे ही मूत्र और वीर्यको करते हैं, और बलमें हित हैं और वातको नाशते हैं, कफ और पित्तको देते हैं, तिन्होंमें महामृगसंज्ञक शीतवीर्यवाले हैं, और कन्याद तथा प्रस संज्ञक जीव ॥ ६ ॥ लवणानुरसाः पाके कटुका मांसवर्द्धनाः ॥ जीर्णाशोंग्रहणीदोषशोषार्ताना परं हिताः॥६१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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