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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । लघुर्योषिञ्चतुष्पात्सु विहंगेषु पुनः पुमान् ॥ शिरःस्कन्धोरुपृष्ठस्य कटयाः सक्थ्नोश्च गौरवम् ॥ ६८॥ चौपायोंमें स्त्रीसंज्ञक चौपाया हलकाहै, और पक्षियोंमें पुरुषसंज्ञक पक्षी हलकाहै, और शिरकंधा-जंघा-पृष्ठ-कटि-सक्थि-इन अंगोंके मांस पूर्व २ क्रमसे भोर हैं ।। ६८ ॥ तथामपक्वाशययोर्यथापूर्व विनिर्दिशेत् ॥ शोणितप्रभृतीनां च धातूनामुत्तरोत्तरम् ॥ ६९॥ पक्काशयके मांससे आमाशयका मांस भारी है, और रक्तआदि धातुओंमें उत्तरोत्तर क्रमसे भारीपन जानना ॥ ६९॥ मांसाहरीयो वृषणमेदवृकयकृद्धदम् ॥ शाकं पाठासठीपूषासुनिषण्णसतीनजम् ॥ ७० ॥ अन्य जगहके मांससे अंड लिंग तृकस्थान यकृत्-गुदा इन्होंके मांस भारी हैं और पाठाकचूर-पूषा-कुरडू-मटर-चनाका शाक ।। ७० ॥ त्रिदोषघ्नं लघु ग्राहि सराजक्षववास्तुकम् ॥ सनिषण्णोऽग्निकृवृष्यस्तेषु राजक्षवः परम्॥ ७१॥ त्रिदोषको हरता है, हलका है, और स्तंभन है, और राजशाक तथा बथुवाकेभी ऐसही गुण हैं और तिन्होंमें कुरुडूशाक अग्निको करता है, और वृष्य है और तिन्होंमें राजशाक अग्निको अति जगाता है ॥ ७१ ॥ ग्रहण्यशोविकारतो बोभेदि तु वास्तुका ॥ हन्ति दोषत्रयं कुष्ठं वृष्या सोष्णा रसायनम् ॥ ७२॥ __ और ग्रहणादोष तथा बवासीरको नाशताहै. वथुवा विष्टाको भेदित करता है, काकमाची अर्थात मकोह तीन दोषोंको और कुष्टको हरती है, और धातुओंको बढाती है और रसायन है ॥ ७२ ॥ काकमाजी सरा स्वर्या चांगेर्यलाग्निदीपनी ॥ ग्रहण्यशोऽनिलश्लेष्महितोष्णा ग्राहिणी लधुः ॥७३॥ और सर दस्तावरहै और स्वरको उपजाती है,चांगेरी अर्थात् चुका खट्टीहै और अग्निको दीपन करतीहै और ग्रहणीदोष-बवासीर-वात-कफ-इन्होंमें हित है गरम है ग्राहिणी है और हलकीहै७३ पटोलं सप्तलारिष्टशांगेष्टावल्गुजाऽमृताः ॥ वेत्रा बृहती वासा कुन्तली तिलपर्णिका ॥७४ ॥ परवल-सातल-नींब-करंजवल्ली-बावची-गिलोय-वेतकी कोंपल-बडीकटेहली-वासा--- सूक्ष्मतिलजाति-बदरक ॥ ७४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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