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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१०.१) सर्वत्र चोग्रालिविषे पाययेदधिसर्पिषी ॥ विध्येच्छिरा विदध्याच वमनांजननावनम् ॥ ३९॥ उष्णस्निग्धाम्लमधुरं भोजनं चानिलापहम् ॥ सव प्रकारके उग्ररूप बीछके विषमें दही और घतका पान कर, और शिराको वीधै और चमन अंजन नस्य ॥ ३९ ॥ गरम चिकना खट्टा मधुर वातको नाशनेवाला भोजन हितहै ॥ नागरं गृहकपोतपुरीषं बीजपूरकरसो हरितालम् ॥४०॥ सैन्धवं च विनिहन्त्यगदोऽयं लेपतोऽलिकुलजं विषमाशु ॥ और सूंठ कबूतरकी वीठ विजोरेका रस हरताल ॥ ४० ॥ सेंधानमक ये औषध लेप करनेसे बी के विषको शीघ्र नाशतीहैं ॥ अन्ते वृश्चिकदष्टाना समुदीर्णे भृशं विषे ॥४१॥ विषेणालेपयेदंशमुचिटिप्ययं विधिः॥ और बीछूकरके दष्टको अंतमें अत्यंत बढाहुआ विषहोवे तो ॥ ४१ ॥ विषकरके दंशको लेपितकरै और उचिटिंगके विषमेंभी यही विधिहै ॥ नागपुरीषच्छत्रं रोहिषमूलं च शेलुतोयेन ॥४२॥ कुर्याद्गुटिकां लेपादियमलिविषनाशनी श्रेष्ठा ॥ नागपुरीपछत्र रोहितृणकी जड इन्होंको ल्हेसुवाके पानीमें पीस ॥ ४२ ॥ गोली कर लेपसे यह बीके विषको नाशतीहै और श्रेष्टहै ॥ अर्कस्य दुग्धेन शिरीषबीजं त्रि वितं पिप्पलिचूर्णमिश्रम् ॥४३॥ एषोगदो हन्ति विषाणि कीटभुजंगलूतोन्दुरवृश्चिकानाम् ॥ आकके दूधमें तीनवार भावितकिया शिरसका बीज और पीपलका चूर्ण ॥४३ ॥ यह औषध कीट सर्प मकडी मूषक और बी के वीषोंको नाशताहै ॥ शिरीषपुष्पं सकरञ्जबीजं काश्मीरजं कुष्ठमनःशिला च ॥ ४४ ॥ एषोगदो रात्रिकवृश्चिकानां संक्रान्तिकारी कथितो जिनेन॥ और शिरसका फूल करंजुवाके बीज कंभारीका फल कूट मनशिल || ४४ ॥ यह औषध रात्रिकनामवाले कीटो और बीओंके विषको नाशतोहै यह जिनने कहाहै ॥ कोटिभ्यो दारुणतरा लूताः षोडश ता जगुः ॥४५॥ अष्टाविंशतिरित्येके ततोऽप्यन्ये तु भूयसीः॥ सहस्ररश्म्यनुचरा बदन्त्यन्ये सहस्रशः ॥ ४६ ॥ बहूपद्रवरूपा तु लूतैकैव विषात्मिका ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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