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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१००२) अष्टाङ्गहृदयेऔर कीटोंसे अत्यंत दारुणरूप लूता अर्थात् मकडी १६ प्रकारकी मुनिजनोंने कहीहै ॥४५॥ और कितनेक मुनियोंने २८ मकडी कहीहै और कितनेक मुनियोंने बहुतसी मकडियोंको कहाहै और कितनेक मुनिजन सर्यके पश्चात् विचरनेवाली हजारहों मकडियोंको कहतेहैं ॥ ४६ ॥ और वाग्भटवैद्य बहुतसे उपद्रवों युक्त रूपोंवाली और विषकी आत्मावाली एकही मकडीको मानताहै ॥ रूपाणि नामतस्तस्या दुर्जेयान्यतिसङ्करात् ॥४७॥ नास्ति स्थानव्यवस्था च दोषतोऽतःप्रचक्षते ॥ और तिस मकडीके नामोंसे रूप अतिसंकरसे नहीं जाने जाते ॥ ४७ ॥ स्थान और व्यवस्थाभी नहींहै तिसकारणसे दोषवशसे ग्रंथकार वर्णन करेंगें ॥ कृच्छ्रसाध्या पृथग्दोषैरसाध्या निचयेन सा ॥४८॥ - पृथक् पृथक् वात आदि दोषोंसे मकडी कष्टसाध्य होतीहै और सन्निपातसे मकडी असाध्य कहीहै ॥ ४८॥ तदंशः पैत्तिको दाहतृट्स्फोटज्वरमोहवान् ॥ भृशोष्मा रक्तपीताभः क्लेदी द्राक्षाफलोपमः॥४९॥ तिस मकडीका पित्तकी अधिकतावाला दंश दाह तृषा फोडा ज्वर मोहवाला और अत्यंत गरमाईवाला रक्त पीत कांतिवाला खेदवाला और दाखके फलके समान कांतिवाला होताहै ॥४९॥ श्लैष्मिकः कठिनः पाण्डुः परूषकफलाकृतिः ॥ निद्रां शीतज्वरं कासं कण्डूं च कुरुते भृशम् ॥ ५० ॥ • कफकी अधिकतावाला मकडकिा दंश कठोर पांडु और फालसेके फलके समान आकृतिवाला और नींद शीतज्वर खांसीको अतिशयकरके करनेवाला होताहै ॥ ५० ॥ वातिकः परुषः श्यावः पर्वभेदज्वरप्रदः॥ वातकी अधिकतावाला मकडीका दंश स्पर्शमें कठोर काला संधिभेद ज्वरको देनेवाला होताहै | तद्विभागं यथास्वं च दोषलिङ्गैविभावयेत् ॥ ५१ ॥ और तिन मकडियोंके विभागको यथायोग्य दोषके लक्षणोंसे लक्षितकरै ॥ ५१ ॥ असाध्यायां तु हृन्मोहश्वासहिध्माशिरोरुजाः॥ श्वेताः पीताः सिता रक्ताः पिटिकाः श्वयथूद्भवाः ॥ ५२ ॥ वेपथुर्वमथुर्दाहस्तृडान्ध्यं वक्रनासता ॥ श्यावोष्ट्रवक्रदन्तत्वं पृष्ठग्रीवावभञ्जनम् ॥ ५३॥. पक्वजम्बुसवर्ण च दंशास्त्रवति शोणितम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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