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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १००० ) अष्टाङ्गहृदये उपनाहे घृते भृष्टः कल्कोजाज्याः ससैन्धवः ॥ घृत भुना हुआ और सेंधानमकसे संयुक्त जीरेका कल्क उपनाह में हित हैं ॥ आदर्श स्वेदितं चूर्णैः प्रच्छाय प्रतिसारयेत् ॥ ३१ ॥ रजनीसैन्धवव्योष शिरीषफलपुष्पजैः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और सब ओरसे दंशको स्वेदित और प्रच्छादितकर पीछे चूर्णों से घिसे ॥ ३१ ॥ हलदी सैंधानमक सूंठ मिरच पीपल शिरसके फल अथवा फूलसे घिसे ॥ मातुलुंगाम्लगोमूत्रपिष्टं च सुरसाग्रजम् ॥ ३२ ॥ लेपः सुखोष्णश्च हितः पिण्याको गोमयोऽपि वा ॥ पाने सर्पिर्मधुयुतं क्षीरं वा भूरिशर्करम् ॥ ३३ ॥ और विजोरे के रस में तथा गोमूत्र में पिसेहुये संभालूके फूलका ॥ ३२ ॥ लेप और सुखपूर्वक गरम किया खल अथवा गोबर लेपमें हित है और पीनेमें घृत और शहद से संयुक्त किया दूध अथवा बहुतसी खांडसे संयुक्त किया दूध हितहै ॥ ३३ ॥ पारावतशकृत्पथ्या तगरं विश्वभेषजम् ॥ बीजपूररसोन्मिश्रः परमो वृश्चिकागदः ॥ ३४ ॥ सशैवलोष्ट्रा दंष्ट्रा च हन्ति वृश्चिकजं विषम् ॥ कबूतरकी वीट हरडे तगर सूंठ इन्होंको विजोरेके रसमें मिलावै, बीके विषमें यह श्रेष्ठ औषध है ॥ ३४ ॥ शिवालसे संयुक्तकरी ऊंटकी जाड बीके विषको नाशती है ॥. हिंगुना हरितालेन मातुलंगरसेन च ॥ ३५ ॥ लेपाञ्जनाभ्यां गुटिका परमं वृश्चिकापहा ॥ और हींग हरताल विजोरेकारस ||३९||इन्होंकी गोली लेप अंजनकरके बीके विषको नाशती है ।। करञ्जार्ज्जुनशैलूनां कटुभ्याः कुटजस्य च ॥ ३६ ॥ शिरीषस्य च पुष्पाणि मस्तुना दंशलेपनम् ॥ और करंजुआ कोहवृक्ष ल्हेषवावृक्ष गोकर्णी कूडा ॥ ३६ ॥ शिरस इन्होंके फूलों को दहीके/ मस्तु में पीस दंश में लेपकरे ॥ यो मुह्यति प्रश्वसिति प्रलपत्युग्रवेदनः ॥ ३७ ॥ पथ्यानिशाकृष्णामञ्जिष्ठातिविषोषणम् ॥ सालाम्बुवृत्तं वार्त्ताकरसपिष्टं प्रलेपनम् ॥ ३८ ॥ तस्य और जो मूर्च्छित होवे और अतिशयकर के श्वासलेवे और प्रलापकरे और उम्र पीडासे संयुक्त हो ॥ ३७ ॥ तिसको हरडै हलदी पीपल मजीठ अतीस मिरच तूंबीका वृंत इन्होंको वार्ताकूके रसमें पीस लेपकरै ॥ ३८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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