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________________ कर्णपूरक २२७६ कणेमोरट ८ (५) नन्दी वृक्ष । त्रिका० । (६) कर्णबन्धनाकृति-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कर्णवेधन करनफूल । के उपरांत उसके बंधन का प्राकार । यह १५ कर्ण पूरक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) कदंब का प्रकार का होताहै-(१) नेमिसंधानक, (२) पेड़ । कदम का वृक्ष । रा०नि० व० ६ । (२) उत्पलभेद्यक, (३) वल्लूरक, (४) प्रासंगिम, अशोक का पेड़। रा०नि० व०१०। (३) (५) गंडकर्ण, (६) पाहाय्यं,(७)निधिम, तिल । तिलक । वै० निघ० । (८) व्यायोजिम, (६) कपाट सन्धिक, (१०) कण पूरण-संज्ञा पुं० [सं० की०] (१) तेल श्रद्धकपाट सन्धिक, (११) संक्षिप्त, (१२) श्रादि से कान भरने की क्रिया वा भाव । हीनकर्ण, (१३) वल्लीकर्ण, (१४) यष्टिकर्ण कहा है और (१५) काकोष्ठक । सु० सू० १६ अ० । कर्णं प्रपूरयेत् सम्यक् स्नेहाचैर्मात्रया भिषक् । विस्तार के लिये यथास्थान देखो। नोच्चैः श्रुतिर्न वाधिर्यं स्यान्नित्यं कर्णपूरणात् ॥ | कर्णबहिद्वार-संज्ञा पु० [सं० वी०] (Opening रसाद्यः पूरणङ्कणे भोजनात्प्राक् प्रशस्यते । of Extrnal anditory meatus ) कान का बाहर का छिद्र । श्र० शा० । प्र० शा० । तैलाद्यैः पूरणं कर्णे भास्करेऽस्तमुपागते ॥ | कर्ण बुदबुद-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं०] (Auditoस्वेदयेत्कण देशन्तु परिवर्तन शायिनः । ___ry Vesicle) अ. शा०। मूत्रैःस्नेहरसै: कोष्यौः पूरयेच्च ततोभिषक् ॥ कर्णभूषण-संज्ञा पुं० [सं० वी० पुं०] (1) स्वस्थस्य पूरितं रक्षेत् मात्राशतमवेदने। । अशोक का पेड़ । (२) नागकेशर । ५० मु०। शतमात्रं श्रोत्रगदे शिरोरोगे तथैवच ।। | कर्णमद्गुर-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] (Silurus वैद्यकम् Unitus ) A sort of gheat fish (२) कान में डालने की चीज़। कर्णपूरण | ___ एक प्रकार की मछली । कानमागुर । वै० निघ० । द्रव्य । | कर्णमल-संज्ञा पुं० [सं० को०] कान का खूट । कण प्रणाद-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कर्णनाद नामक | कर्णगूथ । हारा। रोग विशेष । दे० 'कर्णनाद" । | कर्णमूल-संज्ञा पुं० [सं० लो01 ) कान की कणे प्रतिनाह, कर्णप्रतोनाह-संज्ञा पु[सं० पु.] जड़ के पास का देश । कान को जड़ । मा० ज्व० वैद्यक के अनुसार कान का एक रोग जिसमें खूट। नि०। (२) एक रोग जिसमें कान की जड़ के फूलकर अर्थात् पतली होकर नाक और मुंह में | पास सूजन होती है। कनपेड़ा । Parotitis पहँच जाती है। इस रोग के होने से प्राधासीसी कर्णमूलीय शंखास्थि-संज्ञा स्त्री० [सं०] अस्थि उत्पन्न हो जाती है । सु. उ० २० अ०। मा० विशेष । अ० शा०। नि। कर्णमृदंग-संज्ञा पु० [सं०] कान की भीतरी कर्णप्रक्षालन-संज्ञा पुं० [सं० वी० ] कान धोने | झिल्ली । कर्णपट । को औषधियाँ-श्रामला, मजीठ, लोध, कर्णमोचक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कनफोड़ा। तेन्दू, वास्तुक इन्हें सनान भाग लेकर क्वाथ कर्णस्फोटा । वै० निव० २ भ० २० पि० चि. करें । गोमूत्र के साथ क्वाथ करना उपयोगी है। दूर्वाद्य तैल । वृ०नि० २० कर्ण रो० चि०। | कमोटा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] बबूल का पेड़। कर्णप्रांत-संज्ञा पु० [सं० पु.] कान की छोर । ___ बर्बर वृक्ष । वै० निघ। कर्णफल-संज्ञा पु [सं० पु.] Ophiocepha- कर्णमोदा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ]पर्वमूला ।छुरिका । lus kurrawiy एक प्रकार की मछली। रा०नि० । नि०शि० । गुण-यह अजीर्ण तथा कफकारक है । कर्णमोरट-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.](१) कनफोड़ा । राज.३५०। ___कर्णस्फोटा । रसेन्द्र चि० सूर्य पातक ताम्र ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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