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________________ करंडगिडा २२३३ कराँकुल परंडगिडा-) [ कना० ] गोरखमुडी । मुद्धितिका । | एकत्र वर्णन किया है; परन्तु कुरर टिटिहरी को करंडिगिडी कहते हैं। कोई कोई कुलंग के प्राकृति-वर्णन प्रसंग में लिखते हैं, कि इसका सिर लाल और करंडुई-ता. ] मुंगे। वाकी शरीर मटमैले रंग का होता है। खज़ाइनुल करंडो-[१] प्रदविया नामक वृहद् यूनानी निघंटु में लिखा है, करतीनः-[ इटैलियन कारंतीना से मुझ०] कि कुज दो प्रकार का होता है-सफेद और करंद- । संज्ञा पु [?] पिपरामूल । खाको । इनमें से सफेद अल्प प्राप्य है और करंदा उत्तम वह है जिसका बाज़ ने आखेट किया हो। करंध, करंधा-संज्ञा पु. [?] पिपरामूल । क्यों कि श्रम और ब्याकुलता के कारण इसका करंधिस-गु० ] पाठा। अंबष्ठा । मांस कोमल हो जाता है। करब-संज्ञा पुं० [ सं० पु.] [वि. करंबित ] गुणधर्म तथा प्रयोग(.) मिश्रिण । मिलावट । दधिमिश्रित खाद्य । आयुर्वेदीय मतानुसारकरंवर-[पं०] सिरस । क्रौञ्चः पित्तानिलहरः पेचकः वातजित् । करसहा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] स्वर्णक्षीरी लता। अर्थात् क्रौञ्च पित्त और वात नाशक है। कराँकुल-संज्ञा पुं॰ [सं० कलाङ्करः ] बगुले की ज्वरे हितः। (च०६०) जाति की पानी के किनारे की एक बड़ी चिड़िया अर्थात् यह ज्वर में हितकारी है। जिसके झुण्ड ठण्डे पहाड़ी देशों से जाड़े के दिनों | क्रौञ्चो वृप्योऽतिरुचिकृदश्मरी हन्ति नित्यशः । में आते हैं। यह 'कर' 'कर' शब्द करती हुई | शोषमूच्छोहरो वल्यो हन्ति कासमरोचकम् ॥ पंक्रि बांधकर आकाश में उड़ती हैं। इसका रंग (अनि० २१ अ. पद्मबीजे । वै. निघ.) स्याही और कुछ सुर्सी लिये हुए भूरा होता है अर्थात् कराँकुल का मांस वृष्य, वल्य तथा और इसकी गरदन के नीचे का भाग सफेद अत्यन्त रुचिकारी है और यह शोष, मूर्छा, कास होता है। अरोचक एवं अश्मरी का नाश करता है। पर्याकुंज (ख० अ०), कुंज ( फांर्वीज़ । यूनानी मतानुसारडिक्शनरी), कोंच (ता. श०), घाटी, बन प्रकृति-मांस द्वितीय कक्षा में उष्ण और रुक्ष कुकढ़ी, करांकुल-हिं० । कोंच बक-बं०। है। किन्तु उष्णता की अपेक्षा रुक्षता परिवर्द्धित कुलंग-फ्रा० । कुर्की-अ० । हिरीन Heron होती है । कोई कोई शीतल और रूक्ष लिखते हैं। कल्यु Curlew -अं० श्रार्डियोला गेयिाई इसका पित्त रुक्ष है। Ardeola grayii,Sykee. sušar हानिकता-मांस, दीर्घपाकी है और सांद्र क्युलेटर Ardea Jaculater-ले०।। (गलीज) दोष उत्पन्न करता है (म. मु०; संस्कृत पर्या-क्रौञ्चः क्रौञ्चकः क्रोञ्चवी, ख० अ०), सौदावी खून उत्पन्न करता है (मु. दीर्घखः, राम्रिजागरः, नीलक्रौञ्चः. नीलाङ्गः दीर्घ- ना०)। ग्रीवः, अतिजागरः, (ध० नि० ध्व०), कुररः, ___ दर्पघ्न-मांस को पय्युषित करके पकाना, खरशब्दः, कुङ्, क्रौञ्चः, पकिचरः, खरः (रा. सिरका, नमक और गरम मसाले भी दर्पन हैं। नि० १६ व०), कलीबकः, कलिकः (शब्दर०) प्रतिनिधि-किसी किसी गुण में जंगली कराकर-सं०। कबूतर का मांस । मतान्तर से सारस भी इसकी वक्तव्य-यद्यपि संस्कृत कोषों में "कलाङ्कर" प्रतिनिधि हैं। मांस इसका हलाल (शास्त्र और 'क्रौञ्च' दोनों एक नहीं माने गये हैं, पर विहित ) है। अधिकांश लोग कराँकुल' हो को 'क्रौञ्च' पक्षी मात्रा-मांस आवश्यकतानुसार, भेजा और मानते हैं। किसी किसी ने क्रौञ्च और कुरर का पित्ता २-३ रत्ती तक। फा०६०
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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