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________________ करजगाछ २२३२ करडई के विकारों को दूर करके शरीर में नवीन रक्त का | करंजा-च-झाड़-[ मरा०] ) करंज का पेड । करंज संचार करता है। करंजा-च-वृक्ष-[ मरा० ] कंजे का पेड़ । करंजुवा द्वारा होनेवाली धातूपधातु की भस्में करंजादि लेप-संज्ञा पु० [सं० ] उक्न नाम का एक (५) हजुल यहूद वा संग यहूद के योग। भस्म की विधि निर्माणविधि-करंज की गिरी, हल्दी, कसीस. प्रथम १ तो० हल यहूद को लेकर दही के पद्माक, सहद, गोरोचन और हरताल इन्हें पीससाथ एक पहर पूरा निरन्तर आलोड़ित करें और कर लेप करने से अलस का नाश होता है । वृ. फिर टिकिया बनाकर सुखा लेवें। पुनः १ पाव नि०र० तुद्र रो०चि०। जनके पत्तों को कटकर एक मिट्टी के सकोरे में | करंजायंजन-संज्ञा पु. [सं. क्री.] उक नाम का उक्त टिकिये के ऊपर नीचे देकर, ऊपर से दूसरा एक योग। सकोरा उलटा रखकर खूब कपरौटी करके २० सेर निर्माण विधि-करंज की मांगी, कमल; उपलों की अग्नि देवें । भस्म होगा। कमल केसर, चन्दन, नीलोत्पल और गेरू को मात्रा-1 से ४ रत्ती तक । खियारैन इत्यादि गोबर के रस में पीसकर अंजन करने से नक्रांध के रस के साथ या माजूनों में मिलाकर देवें । यह ( रतौंधी) का नाश होता है । वृ०नि० २० नेत्र वृक्काश्मरी को निकालता और सूजाक में इसका रो. चि.। चमत्कृत प्रभाव प्रदर्शित होता है। करंजिया-संज्ञा स्त्री॰ [१] उदकीयं । (२) कृष्णाभ्रक १ छटाँक करंजुए के बीजों [सिरि० ] करमकल्ला । कर्नव। . की गिरी १ छटाँक, मुर्गी का अंडा ६ अदद, | करंजी-संज्ञा स्त्री० [सं० करजी ] दे॰ "करजी" । कलमीशोरा पूरा पाव, सफेद संखिया १ माशा संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कंजे का एक भेद । और घीकुमार का लबाब १ छटॉक-इन सबको इसका पेड़ कांटेदार काफी ऊचा होता है। पत्ते खरल करके मिट्टी के दो सकोरों के भीतर रखकर आमले के पत्तों की तरह. फल-फूल की तरह होते कपड़ मिट्टी करके २० सेर उपलों की अग्नि देवें। हैं । परन्तु फल अपरिपक्कास्था में हरे और इसके स्वांग शीतल होने पर निकालें, यदि चमक रहे तो उपरांत लाल चुन्नटदार होजाते हैं । यह हिमालय पुनः अग्नि देवें। के नीचे भागों में अजमेर, बुदेलखण्ड, बिहार, __ मात्रा-एक सुर्ख (रत्ती) उपयुक्त शर्बत श्रासाम, ब्रह्मा, पञ्चिमी प्रायद्वीप और लंका में या अर्क के साथ इसका सेवन करें। यह सूजाक, होता है । कँजी। सुखकाई, शुकाई (द०)। संतत ज्वर और वबाई बुखारों के लिये अतीव ( Holoptelea Integrifolia ) गुणकारी है । यदि चातुर्थिक ज्वर में देना हो, तो (२) अमना । कुज । पपरी । कुनैन के साथ देवें । अतिशय लाभकारी है।। करंजुआ, करंजुवा-संज्ञा पुं॰ [सं० करजः] (1) संज्ञा पुं० [सं० कलिंग, फ्रा० कुलंग] कंजा । सागरगोट । (२) करंज । मुरगा। करंजून:-[?] फलंजूनः । करंजगाछ-[बं०] कंजा । करंज । | करंझ-[द० jकंजा । करंज । करंजन-[?] सहिजन । करंटक-कत्तिन-काय-[ते०, मल.] काकमारी। ___संज्ञा पुं॰ [देश॰] कंजा । करंज । करंटी-[को०] विशाला । जंगली इन्द्रायन । करंजय-[करना० ] करमई । अम्ल करंज । करंटोली-[ मरा० ] धार करेखा । किरार । करंजवा-संज्ञा पु० [सं० करा ] करंज । कंजा। | करठीड-[ गु० ] पाठा । करंजा-संज्ञा पु० दे० "करञ्ज" । (२) गाँजा। | करंड-संज्ञा पु० दे० "करण्ड"। वि० [स्त्री० करंजी ] करंज वा कंजे के रंग को संज्ञा पुं॰ [सं० कुरविंद ] कुरुल पत्थर । . सी आँख वाला । भूरी आँखवाला । । करंडई-[ ता०] विश्व तुलसी । वबुई। .
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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