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________________ करना २२०३ करनियत जगह इसका रस पीने से गरम ख़ानक़ान, पैत्तिक उदरजन्य वायु शूल तथा बादी को दूर करता है। कास और उष्ण आमाशयगत प्रदाह का निवारण इसका शर्बत पानी में मिलाकर पीने से शांति होता है । शर्करा मिलाकर इसका शर्बत बनाकर मिलती है । इसका रस पिलाने से विषाक कीटादि खाने से भी उक्त लाभ प्राप्त होते हैं। यह उष्ण दंशजनित विष का निवारण होता है। इसका प्रकृति को बहुत सात्म्य है । पुट्ठों के लिए अन्य ताज़ा रस पिलाने से पाचन नैर्बल्य,जिसमें भोजनोअम्ल द्रव्यों की अपेक्षा यह कम हानिकारक होता त्तर कै हो जाती है, मिटता है। इसके रसमें जवाहै। तथापि अस्वस्थ पुट्ठों को इससे हानि पहुँचती खार और मधु मिलाकर पिलाने से उरोशूल, कटिहै । इसके बीज बिषघ्न हैं। सात माशे इसके शूल, कूल्हे के जोड़ का दर्द और बादी का रोग बीज भक्षण से कीटादि जङ्गम बिष दूर होते हैं । श्राराम होता है । | तोले कागजी नीबू के तेजाब फलस्वक, फल और फल-मुकुल श्रामाशय बलप्रद में सोलह गुना पानी मिलाकर विलयन प्राप्त करें एवं संग्राही और काबिज है । इसके छिलके को इसमें कर के तेज को कुछ बूदें डालकर उसकी सुखाकर पानी के साथ खाने से छर्दि और हल्लास जगह काममें लासकते हैं। कन का रस शीघ्र दूर होते हैं । यह उदरज कृमियों को निकालता है, बिगड़ जाता है । इस लिये इसका रस देर तक इसके पत्र-पुष्प और फलस्वक् सूघने से मन प्रफु- नहीं पड़ा रहने देना चाहिये, प्रत्युत तुरत काम में ल्लित होता है। कन्ना और इसके पत्र प्लेग-ताऊन लाना चाहिये, इसे अधिक समय तक सुरक्षित और वायुदोषज महामारी को दूर करते हैं । इसका रखनेको सर्वोत्तम विधि यह है -सर्व प्रथम कन्ने फूल सू घने से प्रतिश्याय श्राराम होता है । इसकी का रस निचोड़ कर कुछ देर तक पड़ा रहने देवें । जड़ के बारीक रेशे शीतल मारक बिषों के लिए! जब उसका जम जानेवाला हिस्सा प्रथक् हो जाय, अतीव गुणकारी है । इनको सुखाकर सात माशे तब इसे वस्त्र पूत करके बोतल में गले तक भर की मात्रा में मय के साथ सेवन करना चाहिये। देवें और उसके ऊपर बादाम का तेल या कोई इसका ६ माशे छिलका मध के साथ सेवन करने अन्य तेल डाल देवें । अथवा वोतलों को श्रौटते से बिच्छ का विष उतर जाता है। माशे इसका हुये पानी में सोलह मिनिट तक रखकर फिर उनमें तेल पीने और लगाने से भी शोतल प्राणिज बिष काग लगा दिया जाय, तो और भी उत्तम हो। उतर जाता है । इसके छिलकों से प्राप्त तैल नार- अथवा मंदाग्नि पर उसका पानी उड़ाकर रसको दीन तैल के समान गुणकारी होता है। कोई कोई। गाढ़ा कर लेवें । अथवा रस को ऐसो सरदी में इसे उसकी अपेक्षा उत्तम समझते हैं। इसके फूल रखें, जिसमें तजलीयांश जम जाय और केवल एवं फलत्वक सुखाकर कपड़ों में रखने से ये अपने अर्क मात्र शेष रह जाय । गुण में यह पहले से प्रभाव से उनमें कीड़े नहीं लगते देते हैं। इसका भी बढ़ जाता है। पीला छिलका सिरके में डालकर अचार बनाकर इसके पेड़ की जड़ की छाल का काढ़ा पिलाने या इसका मुरब्बा तैयार करके खाने से प्रामाशय से ज्वर मुक्त होता है । इसके बीजों की फंकी देने को बल प्राप्त होता है । ख. अ०।। से कीड़े मरते हैं । इसका रस और बारूद बगाने इसके फूलों से खींचे हुये अर्क को अर्क बहार से खुजली मिटती है। कने का प्रचार बनाकर कहते हैं । यह उष्ण और रूत है तथा मस्तिष्क खाने से तिल्ली कटती है । (ख० प्र०) की दुर्वलता को दूर करता, हृदय को प्रफुल्लित संज्ञा पुं० [ देश• दिल्ली ] खट्टा का फूल । करता, भूख बढ़ाता, कामोद्दीपन करता और उरो संज्ञा पुं॰ [?] (१) हूम (बम्ब०)। शूल, वायुजन्य उदरशूल, खनकान तथा मूछा। चिलकुड, (ते.)। (२) ऊँटकटारा । उस्तरामें लाभकारी है। खार । (३) श्रोस। किराद । वैद्यों के मत से कला उष्ण है। यह कफ, वायु करना नीबू-संज्ञा पुं० दे० "करना"। ओर पेट के बढ़ जाने को मिटाता है। फलस्वक् । करनियून-[ यू० ] शाहबलूत ।।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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