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________________ कफनीगुटिका २१३३ कफवात रा०नि० व० । छोटी हाऊबेर । कच्छु नी । रा. कफ़नाफल-[?] कनेर । खरज़हरः । निः । नि०शि०। कफनाशन-वि० [सं. वि.] कफनाशक । कफनी गुटिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कपूर ६ कफप्रकृति-संज्ञा स्त्री० [सं० बी० ] बलग़मो मिजाज़ मा०, कस्तूरी ६ मा०, लवंग २ तो०, मिर्च, श्लेष्मप्रकृति । वि० दे० "श्लेष्मा" । पीपर, वहेड़े को छाल, और कुलिञ्जन २.२ तो०, कफमन्दिर-संज्ञा पु० [स० पु. क्री० ] एक प्रकार अनार के फल का छिलका ४ तो०. और सर्व का मण्ड। माँड़ । फेन । तुल्य खैरसार ( कथा ) इन सबको पीसकर क़ायाल:-[?] भालू बुख़ारा । (बबूल की छाल के क्वाथ से) घोट कर मूग कफर, कफ़-[१०] कलयहूद। प्रमाणकी ोलियाँ बनाएँ । इसे मुख में रख चूसने क़फ़रस-[?] हाऊबेर । हबुश । से कफ नष्ट होता है। (योगत. उरःहत चि०) कफ़रा-सिरि०] मेहदी । हिना । कफघ्नी वटी-सज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक वटी कफरहा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] नागरमोथा । विशेष । कफनी गुटिका । वृ० नि. र. कास नागरमुस्ता। चि० । दे० 'कफनी गुटिका"। कफरोग-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कफजन्य रोगमात्र। कफचिन्तामणि रस-संज्ञा पु० [सं० पुं०] हिंगुल, कफरोधि-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० कफरोधिन् ] मिर्च । कपूर, इंद्रजौ, भुना सुहागा, भंगवीज, कालीमिर्च, । प्रत्येक समान भाग। एक श्रोषधी का तिगना कफ रोहिणी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] गले का एक उत्तम रससिंदूर । सबको चूर्ण कर अदरख रोग जो कफ से उत्पन्न होता है। एक प्रकार का के रससे खालकर चने प्रमाणको गोलियाँ बनाएँ। कफजन्य गलरोग, कफसंभव गलरोहिणी में कंठ गुण-इसके सेवन से कफ और सम्पूर्ण वात का छिद्र बंद हो जाता है । इसके अंकुर कड़े होते के रोग नष्ट होते हैं । ( वृहत् रसरा० सु०) हैं और यह देर में पकनेवाली होती है। यथाकफज-[फा०] (१ झाग । (२) खुआ। "स्रोतो निरोधिन्यपि मन्दपाकास्थिराङ्करा या क़फज-[?] कसूस का पौधा। कफसंभवा सा"। का जमा-[अ० } दे. "कनप्रज्दम" । मा०नि० । दे. "गलरोहिणी"। कफज्वर-संज्ञा पु. [सं. पु.] एक प्रकार का कफल-वि० [सं०वि०] कफविशिष्ट । बलग़मी। बुखार जो कफ से होता है। श्ले मजन्य ज्वर । | | काल-[अ० ] सूखी श्रोषधि । खुश्क नबात । कफज ज्वर । कफल-[१०] दोनों चूतड़ों का मध्य । नितम्ब कफणि, कफणी-संज्ञा स्त्री० [सं० पु, स्त्री० ] मध्य। हाथ और बाहु के जोड़ की हड्डी । केहुनी । कोहनी कफली-संज्ञा पुं० [हिं० खपेली ] एक प्रकार का कफोणि । रा०नि० ५० १८। गेहूं जिसे खपली भी कहते हैं। क़ात-[१] जीरा । कालूत-[ ? ] शामी गंदना। कफ़तर-[फा०, तु.] कबूतर । कालूस-[१] गार। क़फ़ताला-[रू.] पालू बुखारा । कफवर्द्धक-वि० [सं० वि० ] जो कफ को बढ़ाये । कफद-वि० [सं. वि.] श्लेष्मकारक । कफजनक । कफ बढ़ानेवाला । कफ पैदा करनेवाला। श्लेष्मकाद-[सिरि०] साही। वर्द्धक । [?] जीरा । कफवर्द्धन-वि० [सं० वि.] कफवर्धक । संज्ञा पु० । कादीर-यू.) मांस । गोश्त ।। [सं० पु.] एक प्रकार का तगर-फूल | पिंडीकफनज-[ ? ] रेगमाही । समकतुम्सैदा । तगर । हजारा तगर । त्रिका० । कफनाड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार का | कफ वात-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक प्रकार का दंतमूखसत रोग विशेष । एक रोग जो मसूदों वात व्याधि । वा बाँत को जड़ में होता है। मा०नि०। लक्षण-वेह शोफो ज्वरः कार्य कासरच
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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