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________________ कफविरोधि २१३४ कफालय ह्यल्प भारिता । देह स्थूतं च बहति कफवातस्य | कफहर-वि० [सं० वि०] कफ को दूर करनेवाला। लक्षणम् ॥ कफनाशक । अर्थात् इस रोग में जर, देह में सूजन, कृराता | कफहत्-वि० [सं० वि.] श्लेजनाराक । कफ को खाँसो, अल्प भाषण और देह में स्थूलता होती छाँटनेवाला । है। बा. रा. कार-[ ? ] कैकहर। कविराधि-संहा पु० [सं० पु. लो० करुधिरोधिन्] कफा- छु रे को कली का श्रावरण । कुकरा। । नि । मरिच । रा०नि व०६। का-[अ०] बहु० उकरू, अफ्रियः, अ (इ) काs, वि० [स. वि.] जो कफ पैदा होने वा बढ़ने __कुतो का न ) गरदन के पीछे का भाग । गुद्दी। को रोके । श्लेष्मरोधक। मन्या | Napa, Neu ia कफ विजयन-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री०] वह द्रव्य कमातिसार-संज्ञा पुं० [सं० पु.] एक प्रकार का जिसके सेवन से अतिशुष्क श्लेष्मा तरलता को अतिसार रोग। श्लेष्मातिसार । कफजन्य पातप्राप्त होती है । यथा-अति मात्रा में भुरु अम्ल सार। सामा०नि०वि० दे० "अतिसार"। रस। कफात्मा-वि० [सं०नि० (१) कफमय । बल काशर-[फ़ा (1) सुमागा। टंक।। (२) ग़मी । (२) कफरूपी। कफान्तक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] बबूल का पेड़ । का राशि:-फा०] म स्कनिया । बबूरक वृत्त । रा०नि०व०८। कक संग-[फा ] खुर । कफसंशमन वर्ग-संज्ञा पुं॰ [सं० पु] क को शांत कफापहा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] जीरा । करनेवाले द्रव्यों का सह। ककहर प्रोषधियों कफाम्लकमत-संज्ञा पु, वृक्षाम्ब । कोकम । धन्य. नि। निशि०। का गण । भावप्रकाश के मतानुसार संशमन वर्गी भेषज पानाहारविहार यह है-रूखे. क्षारीय.कसेले कार-[अ० रूखी रोटी विना सालन के। कडुए और चरपरे पदार्थ एवं व्यायाम, निष्ठीवन | कफारस-[यू.] कबर । (थूकना ), धूम पान, उष्ण शिरो विरेचन, वमन कझालियून-[यू.] शाहतरः। पित्तपापड़ा। और उपवास श्रादि तथा स्त्री सेवा, रातमें जागना | कफारि संज्ञा [ सं . पु.] अादी । अदरक । (२) जलक्रीड़ा-इन भेषज पानाहार-विहार से उग्र से सोंठ । रा. नि० व० ६ । भी उग्र श्लेष्मा का नाश होता है । भा० पू० मारीस-[सिरि०] हब्बुल जुल्म । . २ भ०। क्रमाला-[?] शालूबुखारा । कफसम्भव-वि० [सं० वि०] जो कफ से पैदा हो। | कफिनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (1) हस्तिनी । जिसकी उत्पत्ति कफ से हो । कफोत्थ । हथिनी। (२) कफ प्रधान स्त्री । बलग़मी औरत । कसुफ़ेद-[फा०] बर्फ़ ।। कफस्थान-संज्ञा पुं॰ [सं० श्री.] शरीर में वह स्थान कफ़िरी-अ.] दे० "कुफरी"। जहाँ पर कफ रहता है । कफाशय । वैद्यक शास्त्रा. कफी-वि॰ [सं० वि० कफिन् ] कफयुक। अम० । नसार ये स्थान पाँच हैं-आमाशय, हृदय, कंठ, | श्लेष्मयुक्न । बलग़मी। शिर और संधियाँ । सु० सू० २१ अ०। ___ संज्ञा पुं॰ [सं. पु.] हाथी। गज । वह कफस्राव-संज्ञा पुं॰ [सं० पु] नेत्रसंधिगत रोग का | स्थान जहाँ पर कफ रहता है। ये स्थान पाँच हैं। एक भेद । श्लेष्मत्राव । कफज नेत्रसंधिगत रोग में | आमाशय हृदय, कंठ शिर, भोर संघियाँ। सफेद, गाढ़ी और चिकनी पीव आती है। कफाशय-संज्ञा पुं॰ [ सं० ] वैद्यक शास्त्रानुसार यथा कफस्थान । "श्वेतं सान्द्र पिच्छिलं संस्रवेद्धि श्लेष्मा- कफाह्वय-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कैरर्य। महानिम्ब स्रायोऽसौ विकरोमतस्तु ।" मा०नि०। गिरिनिम्ब। महारिष्ट ।रा.नि...।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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