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________________ कपूर हृद्भेद एवं श्वासोच्छवास कार्य विरोध होजाता है उसमें तथा विष विशेष ( Barbiturale Poisoning) के असाध्य रोगियों में यह बिशेष गुणकारी है। धर्म तथा प्रयोग २११५ आयुर्वेदीय मतानुसारकपूरं कटुतिक्तं च मधुरं शिशिरं विदुः । तृमेदोविष दोषघ्नं चक्षुष्यं मदकारकम् ॥ ( ध० नि० ३ व० ) कपूर - मधुर, तिल, चरपरा और शीतल है । यह तृषा, मेद, एवं विष दोषनाशक और नेत्रों के लिए हितकारी तथा मदकारक है । कर्पूर: शिशिरस्तिक्तः स्निग्धश्रोष्णोऽस्रदाहदः । चिरस्थो दाह दोषघ्नः स धौत : शुभकृत्परः ॥ ( रा० नि० १२ व० ) कपूर - शीतल, कड़वा, स्निग्ध उष्णवीर्य तथा रक्त एवं दाहकारक है । पुराना कपूर दाह और दोषनाशक है । धोया हुआ कपूर परम श्रेष्ठ है । कर्पूर : शीतलो वृष्यश्चक्षुष्यो लेखनो लघुः । सुरभिर्मधुरस्तिक्तः कफपित्त विषापहः ॥ दाहतृष्णाऽऽस्यवैरस्य मेदोदौर्गन्ध्य नाशनः । आक्षेप शमनो निद्रा जननो धर्म बर्द्धनः । वेदनाहारकः कामशान्तिकृच्छुक्रमेह कृत् ॥ कर्पूरो द्विविधः प्रोक्तः पक्कापक प्रभेदतः । पक्कात्पूरत: प्राहुरपकं गुणवत्तरम् ॥ ( भा० पू० खं० ३ व० ) कपूर - शीतल, वृष्य, (वीर्यवर्द्धक) नेत्रों के लिए हितकारी, लेखन लघु, सुगंधयुक्त, मधुर तथा तिकरस एवं कफ, युक्त पित्त, विष, दाह, प्यास, मुख की विरसता, मेदरोग तथा दुर्गन्ध को नष्ट करनेवाला होता है । श्राक्षेपवातनाशक, निद्रा जनक, धर्मबर्द्धक, ( खूब पसीना लानेवाला ) वेदना नाशक, कामवेग को शांतिकर्त्ता और शुक्र प्रमेह कारक ( हारक ) है । पक्क तथा श्रपक्क इन भेदों से कपूर दो प्रकार का होता है। पक कपूर कपूर की अपेक्षा श्रपक्क कपूर श्रधिक गुणकारी होता है ऐसा वैद्यलोग कहते हैं । कर्पूरं शीतलं पाके चतुष्यं कफनाशनम् । पक्क कर्पूरतः प्राहुरपक्कं गुणवत्तरम् ॥ ( राज० ) कपूर - पाक में शीतल, कफनाशक और नेत्र को हितकारी है । पक कपूर से श्रपक्क कपूर अधिक गुणकारी है । सतिक्तः सुरभिः शीतः कर्पूरो लघुलेखनः । तृष्णायां मुख शोषे च वैरस्ये चापि पूजितः ॥ ( सुश्रुत ) कपूर - कड़वा, सुगन्धि, शीतल, हलका, लेखन तथा तृषा, मुखशोष और विरसता को दूर करनेवाला है । कपूरो मधुरस्तिक्तः शीतलः सुरभिर्लघुः । नेत्रयो लेखन कृदृष्यः कटुः प्रीतिकरोमृदुः ॥ मदकारी च संप्रोक्तः कफदाहतृषापहः । रक्तपित्तं कण्ठरोगं नेत्ररोगं विषं तथा ॥ पित्त' च मुखवैरस्यं दौर्गन्ध्यमुदरं तथा । मूत्रकृच्छ्र प्रमेहश्च मलगन्धं च नाशयेत् ॥ स एव नूतनः स्निग्धस्तिक्तश्चोष्णाश्च दाहकृत् सोपि जीणों दाहशोषनाशनः परिकीर्त्तितः ॥ सोपि धौतोगुणैः श्र ेष्ठः प्रोक्तो वैद्यः पुरातनैः ॥ (नि० ना० ) कपूर-मधुर, कड़वा, शीतल, सुगन्धि, हलका, चतुष्य, लेखन, वृष्य, चरपरा, प्रीतिकारक. मृदु, और मदकारी है तथा कफ, दाह, प्यास, रक्तपित्त, कण्ठरोग, नेत्ररोग, विष, पित्त, मुख की विरसता दुर्गन्ध, उदर रोग, मूत्रकृच्छ, प्रमेह और मल की दुर्गन्धि को दूर करता है । नवीन कपूर स्निग्ध कड़वा, गरम और दाहकारक है । पुराना कपूर दाह और शोषनाशक है और धोया हुआ कपूर श्रेष्ठ है। भिन्न-भिन्न कपूर के गुण पोतास (पोताश्रय) भीमसेनी और वरास गुण निघण्टु रत्नाकर के अनुसार ये तीनों स्वादिष्ट शीतल, शुक्रजनक, तिक एवं कटु होते हैं और
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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