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________________ कपास २०६० रुई अधिकतर सफेद होती है । पर किसी-किसी के भीतर को रुई कुछ लाल और मटमैली भी होती है । और किसी-किसी की अन्य रंग की होती है । किसी कपास की रुई चिकनी और मुलायम और किसी की खुरखुरी होती है । रुई के बीच में जो बीज निकलते हैं वे बिनौले कहलाते हैं । कपास के भेद कपास की बहुत सी जातियाँ हैं । जैसे— नरमा, नंदन, हिरगुनी, कील, बरदी, कटेली, नदम रोजी, कुपटा, तेलपट्टी, खानपुरी इत्यादि । वनस्पति शास्त्र वेत्ताओं ने कपास की ऐसी चौबीस उपजातियों का उल्लेख किया है, जिनकी काश्त होती है । परन्तु इसकी उक्त उपजाति-वृद्धि का मुख्य कारण केवल एक स्थान से दूसरे स्थान की मिट्टी और जलवायु की विभिन्नता मात्र है, जिससे उनमें यह सूक्ष्म भेद उत्पन्न हो गया है । इन्हें निम्नप्रधान उपजातियों में विभाजित किया जा सकता है--- (१) कपास वा मनवाँ ( Gossy pium Herbacrum ) (२) देवकपास वा नरमा (Gossy pium Arboreum ) (३) ब्राजील कपास ( Gossy pium Accuminatum ) (४) बर्बादी या अमेरिकन कपास ( Goss y pium Barba dense) इन्हें देशी और विदेशी इन दो भागों में सुगमतापूर्वक बांट सकते हैं, जैसे- (क) देशी उपजातीय कपास । ( १ ) कपास | Indian Cotton ( Gossy pium Herbaceum ) और ( २ ) देव कपास नरमा Religions Cotton ( Gossypium Arboreum, Linn.) देशी कपास श्रधोलिखित वर्गों में भी बाँटा जा सकता है । ( १ ) कृषि कर्पास खेतों में होनेवाली और ( २ ) उद्यान कर्पास जो वगीचों घरों और देवालयों में भी होती है। इसे नरमा वा देवकपास भी कहते हैं । कपास कृषि कर्पास वा मनवाँ सबके परिचय का २ से ३ हाथ तक ऊंचा और केवल वर्षायु होता है । भारतवर्ष में बहुल परिमाण में इसकी काश्त होती है | इसका विस्तृत विवरण आगे कपास शब्द के अंतर्गत होगा । देवकपास लगभग १२ से १५ फुट ऊ ंचा बड़ा बृक्ष सा होता है और कई बर्षो तक रहता है । देवकपास की ही एक जाति वन कपास - श्ररण्यकार्पासो वा भारद्वाजी -- ( Thespasia Lampas; Dal2.) है, जिसका सुप फैलने वाला या वृक्षों के सहारे ऊपर चढ़नेवाला होता है खानदेश और सिंध प्रांत में बनकपास बहुत होता है । काला कपास अर्थात् कालांजनी ( Gossy p ium Nigrum ) भी बनकपास की ही एक उपजाति है। बनकपास के पत्त े छोटे २ फूल १॥ इंच लम्बे हाजी अवस्था में पीतवर्ण के, किंतु सूखने पर गुलाबी होजाते हैं इसकी कपास कुछ पिलाई लिए, हुये होती है । कपास का बीज कुछ विशेष लम्बा और काले रंग का होता है । काले कपास की भी ये दो जातियां होती हैं । १ - काला कपास और (२) बेणी | काले कपास के बीज बन- कपास के बीजों की तरह, पर काले होते हैं । इसकी पत्ती बेणी से छोटी और चोटी की और तीन खण्डों में विभक्त होती है । इसके फूल कुछ ताँबड़े रंग के होते हैं । इसका कपास मध्यम श्रेणी का होता है । वेणी का बीज लंबाई लिये वेणी के समान रहता है । इसके पत्ते काले कपास के पत्तों से बड़े होते हैं | और उसके पांच भाग ऐसे होते हैं कि पांच चोटी से जान पड़ते हैं। इसका फूल पिलाई लिये होता है। इसका फूल बत्ती बनाने के लिए अच्छा होता है। किंतु सूत कातने के लिये उत्तम नहीं होता । देव कपास के पत्ते काले कपास के पत्तों से छोटे और उनकी चोटी की ओर पांच भाग होते हैं। इसके बीज हरापन लिये और फूल बलाई लिये रहते हैं । इसका धागा लम्बा और मज़बूत होता है। इसकी रुई सबसे अच्छी समझी जाती है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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