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________________ कपास २०११ कपास । (ख) बिदेशी उपजातीय कपास (३) ब्राजीलीय कपास Brazil Cott- | on Gossypium Accumintum (४) बर्बदी वा अमेरिकन कपास Ameri can Cotton Gossypium Barba dense. Linn. इतिहास-कपास का श्रादि प्रभव स्थान भारतवर्ष ही है, यहाँ यह प्रागैतिहासिक काल से ही वन्य अवस्था में पाई जाती है। यद्यपि यह अमरीका में भी जंगली होती है। किन्तु पुरानी दुनियां के समस्त देशों में भारतवर्ष से ही इसका प्रसार हुश्रा। सिकंदर महान जब सतलज तक पाया था, तब उसके साथी कपास का पौधा देख कर बहुत आश्चर्य चकित हुये थे। उन्होंने अपने ग्रन्थों में इसका नाम 'ऊर्ण वृक्ष' लिखा है और उसका यह अर्थ लगाया है कि युनान में जो ऊन भेड़ों की पीठ पर उत्पन्न होता है, वह हिन्दुस्तान में पेड़ों पर फलता है। वेचारों ने कदाचित् प्रथम हई कभी नहीं देखी थी, केवल पोस्तीन और ऊर्ण वस्त्र धारण करते थे ।अस्तु, पश्चात् कालीन युनानी लेखकों ने इस बात का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है। और इसे बुस्सूस संज्ञा से अभिहित किया है । सावफरिस्तुस ने एरियोफोरा नाम से और रोमनिवासी प्राइनी ने गासिम्पिनस वा गासी पियून नाम से इसका उल्लेख किया है । पारव्य भाषा में रुई को कुत्तुन और कुफुस कहते हैं । इनमें से कुफुस स्पष्टतया संस्कृत 'कर्पास' से व्युत्पन्न प्रतीत होता है । कपास भारतवर्ष से ही प्रथम फ़ारस फिर अरब और मिश्र आदि देशों में | पहँचा जहाँ से यह पश्चिम अफरीका और सिरिया एशिया माइनर, लेवांट और दक्षिण युरुप के कति पय भागों में प्रसारित हो गया। वहाँ इसे मूर लोग ले गये, जिन्होंने ग्यारहवीं शताब्दी में वहाँ इसकी खेती की। अब यह प्रायः संसार के सभी भागों में कुछ न कुछ होती है। कपास वा मनवाँ पर्या-कार्पासी, सारिणी, चव्या, स्थूजा, | पिचु, बादर, बदरी, गुणसू, तुण्डिकेरिका,मरुद्भवा, समुद्राता (रा. नि.) कार्पासी, तुण्डकेरी, ४१ फा० समुद्रान्ता (भा०), वदरा, तुण्डिकेरी,समुद्रान्ता (१०), पटद, वादरा, सूत्रपुष्पा, वदरी, कार्पासिका (शब्दर०), कार्पासी (भ०), कर्पास (अ. टी.) कार्पासाच्छादनफला, पथ्या, अनग्ना, पटप्रदा, भद्रा, वन्यफला, कर्पास, वरनुम स्थूल, पिचव्या, वादर, (केयदेव ), बदरी, स्थलपिचुर (द्रव्य र.), आच्छादनी, सोमवल्ली, चक्रिका, मेनिक (गण नि०) वामनी, वासनी, विषघ्नी, महौजसी, पटतूल, सापिणी, चव्या, तुलागुड़, तुण्डकेरिका, कार्पास, कार्पासक, कासिकी, कर्पास, कर्पासक, कर्पासी, पिघुल-सं० : कपास, कपास का पेड़, मनवाँ, रुई का पेड़-हि। कपास का झाड़-द० । कर्पाश गाछ, शूतेर गाछ, तुला गाछ, कापास गाछ-बं० । नबातुल कुस्न, शत्रूतुल कुन-अ० । दरख्ते पुबः-फा० । गासीपियम् ह.सियम् (Gossy pium Herbaceum, Linn. गा० इंडिकम् G. Indicum, Linn. गासीपियम् ष्टाकसियाई Gossy pium Stocksii, Mast.-ले० । इडियन काटन प्लांट Indian Cotton plant, काटन टी Cotton tree.-अं०। काटनीरटी इण्डी Cotonnier de Inde, काटोनीर Cotonnier Herbace-फ्रां० | इंडिश्चे. बाम Indische baum बूलेनष्टाडी, Wollen Staude, Baum wollp flanze -जर० । परुत्ति चेडि-ता० । पत्ति चे,कार्पासमुते । परित्तिच्-चेटि-मल । हत्ति-गिडा-कना० । कापूसा-च-झाड़-मरा० । रू-नु-झाड, कपास-नु-झाड -गु० |कपुगहा-सिंगाली । वा-विङ-बर० । गुण प्रकाशिका संज्ञा-'गुणसू'(सूत्रोत्पादक) कार्पासी वर्ग (N. O. Malvacee.) उत्पत्ति-स्थान-इस जाति की कपास संसार के उष्ण प्रधान प्रदेशों तथा समशीतोष्ण कटिबंध स्थित सर्वाधिक उष्ण भागों में उपजती है और प्रायः समग्र भारतभूमि में इसकी कारत होती है । इस उपजाति की बहुत सी नस्लें हैं, जो चीन, मलाया और मिश्र में पाई गई हैं। नानकिन
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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