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________________ कतीरा १६६२ और तरावयव की रक्तस्त्र ति को रोक देता है । कास कंठ और सीने की खुरखुराहट तथा फुफ्फुसजात क्षत को लाभ पहुँचाता है । प्रायः श्रोषधों के विषाक्त प्रभावादिको निवारण करता है । ( म० मु० ) इसे उपयुक्त श्रौषध के साथ पीसकर नेत्र में लगाने से चक्षुगत पूय और विस्फोटादि में उपकार होता है । इसे गदही वा छागी दुग्ध के साथ पीने से अखिल तरावयव से रक्तस्राव होना रुक जाता है । यदि जयपाल सेवनोत्तर विरेचन श्राना बन्द न हो सके, तो कतीरे को पीसकर दधि में मिलाकर सेवन करें । इसे शहद में मिला वटिका वा चक्रिका बना मुख में धारण करें और रस चूसें। यह उरो रोग में लाभकारी है। इसे उपयुक्र श्रौषधियों के साथ पीने से वृक्कशूल, वस्तिशूल. मूत्रमार्गस्थ व्रण और दाहमूत्रता श्रादि रोग शांति होते हैं । यह प्रायः श्रौषधियोंके विषप्रभाव एवं तीच्णता दूर कर उन्हें दर्पशून्य करता है। इसे वात, पित्त और पिच्छिल श्लेष्मा का उत्सर्ग कर्त्ता बतलाते हैं । कतीरा, बादाम को गिरी, निशास्ता और शर्करा - इन सबको बराबर बराबर लेकर हरीरा तैयार करके सदैव इसी तरह सेवन करने से शरीर स्थूल एवं परिवृंहित होता है । } इसके प्रलेप से झाँई तथा व्यंग भेद (नमश ) का नाश होता है । इससे शरीरगत त्वचा कोमल हो जाती है। होंठ फटने पर इसके लगाने से उपकार होता है । सिरके के साथ झींपादि व्यंग रोगों (बहक़ ) एवं श्वित्र के लिये और लबाबों के साथ केशों के लिए इसका प्रलेप उपकारी होता है । गंधक के साथ प्रलेप करने से खुजली और ( श्राकिलः ) धाराम होते हैं । प्रायः श्रौषधियों के अनुपान स्वरूप कतीरा व्यवहार में श्राता है । उदाहरणतः मिक्सचर निर्माण में जो वस्तुएँ जल विलेय नहीं होतीं, कतीरा शामी उन्हें इसके लबाब में मिलाकर देते हैं । ( ख़० श्र० ) गला बैठना तथा श्रत्रव्रणजन्य शोथ एवं शूल में इसके पीने से उपकार होता है । दो दिरम कतीरा मैफ़ख़्तज में तर करके थोड़ा सा बारहसिंगा और चार रत्ती फिटकरी मिलाकर पिलाने से वृक्कशूल और वस्तिस्थसूजन और दाह तत्काल प्रशामित होती है । ( बु० मु० ) ( ३ ) एक प्रकार का गोंद जो पीली- कपास के वृक्ष से प्राप्त होता है । उत्तर भारत में इस गोंद का उपयोग गाथ की प्रतिनिधि स्वरूप होता है। अरबी और फ़ारसी निघंटु-लेखकों का कतीरा या कसीरा - ताद निर्यास वस्तुतः टूगाकंथ या उसका एक भेद मात्र है । श्रतः भारतोपनिविष्ट मुसलमान उक्त शब्द का प्रयोग इस वृक्ष के गोंद के लिये करने लगे । वि० दे० "पीली कपास" । वक्तव्य - यद्यपि भारतीय बाजारों में उपर्युक निर्यास साधारणतः उन्हीं संज्ञाओं से सुपरिचित है, जिनसे वास्तविक ट्राकंथ, तथापि इस विचार से कि उन संज्ञाओं द्वारा उक्त पदार्थों का निश्चित ज्ञान प्राप्त करनेमें भ्रम न हो, प्रथमोन द्रव्य श्रर्थात् पीली - कपास के गोंद की संज्ञानों के पूर्व भारतीय या देशी उपसर्ग जोड़ देना उचित जान पड़ता है । यथा हिंदी कतीरा गोंद - हिं०, द० । तीराये हिंदी हिंदी - फ्रा० । कसोराये हिंदी, समुगुल क़तादे हिंदी - अ० | Cochlospermum Gos sy pium D. C. ( Gum of Indian Tragacanth ) ( ४ ) एक प्रकार का गोंद जो क्रताद की जाति के एक पौधे से जिसे लेटिन भाषा में Astra galus Gummifer कहते हैं । प्राप्त होता है । वि० दे० "टू गाथा" । नोट- यह गोंद इस जाति के कतिपय अन्य पौधों से भी प्राप्त होता है, जिसका यथा स्थान उल्लेख होगा । [पं०] बाडवीस ( पं० ) । गिउर ( काश ० ) कतीरा शामी - [ फ्रा० ] कतीरा । (Syrian Tragacanth)
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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