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________________ कतीरा १६६१ कतीरा रोगों में दिया जाता है। कहते हैं कि कतीरा | गुण धर्म तथा प्रयोग अधिक सेवन करने से पुरुष नपुंसक बन जाता है, | प्रकृति-शीतल और रूक्ष । मुहम्मद शर्फ़ - पर्याय-कुल्ली का लासा कटीरा, कटीला, | हीन ने मुफरिदात हिंदीमें लिखा है कि यह प्रथम कतीला, कतीरा, रामनामी वृक्ष का गोंद, गुलू का कक्षा में शीतल और रूक्ष है। मतान्तर से यह गोंद, कुलु का गोंद । कूलू गोंद हि । सरदी और गरमी में मातदिल और प्रथम कक्षा में The Gum of Sterculia Ureps, तर है । किसी किसीके मतसे प्रथम कक्षामें शीतल Roxb. और रूक्ष है। किन्तु रूक्षता शैत्य की अपेक्षा वक्तव्य-प्रायः अरबी फारसी के कोषों में कम है। किसी-किसी के मत से प्रथम कक्षा कतोरा को फ़ारसी भाषा का शब्द लिखा है, में उष्ण एवं तर और दूसरों के मत से जिसका 'कसीरा मुर्रिब-अरबीकृत है । परन्तु द्वितीय कक्षा में शीतल है और कोई परस्पर उम्दतुल मुहताज के संकलनकर्ता लिखते हैं कि विरोधी गुणधर्म विशिष्ट ( मुरक्किबुल्कुपा) बतकतिपय तबीब इसे यूनानी तरागाकन्सा(Trag- लाते हैं । परन्तु शेख के मत से रूक्षता लिये acantha) शब्द का प्रारब्य उल्था बतलाते शीतल है हैं । यह विदेशीय टूगाकंथ की प्रतिनिधि स्वरूप ___ हानिकर्ता-गुदा को और सुद्दा पैदा काम में आता है। करता है। फारस तथा ईरान में कतीरा शब्द का प्रयोग ___ दपघ्न-गुदा के लिये अनीसू, और कद्द के कतादके गोंद के लिये(बहुत पहले से)होता पारहा बीजों की गिरी । सुद्दों के लिये करप्स । है और ऐसा ज्ञात होता है कि अति प्राचीन कालसे । प्रतिनिधि-कह के बीजों को गिरी, समभाग ही भारतवर्ष में इसका निर्यात हो रहा है। यह | बबूल का गोंद या बादाम का गोंद और भार का विल्कुल टूगाकंथ-विलायती कतीरा के समान बादाम का तेल । होता है । बंबई में गुलूका गोंद जिसे गुजराती मात्रा-२ माशा से ३॥ माशा वा ७ या व्यापारी 'कड़े गोंद' कहते हैं देशी टैगाकथ के रूप १७|| माशा तक। में व्यवहार में आता है और मुसलमान औषध गुण, कर्म, प्रयोग–यह सुरमों में पड़ता विक्रत्ता इसे कतीरा के नाम से बेचते हैं । है। क्योंकि इसमें पिच्छिलता ( लज़जत ) ओर यह गुलू निर्यास भी उक्त पारस्य कृताद निर्यास शीतलता होती है, जिससे यह नेत्रक्षत, नेत्राभिष्यद के सर्वथा समान होता है । कदाचित् उक्र और तद्गत फुसियों को लाभ पहुंचाता है। यह सादृश्य के कारण ही यह भी कतीरा नाम विरेचन औषधों के दर्प निवारणार्थ उनमें पड़ता से सुविख्यात हो गया। वि० दे० "गुलू"। है, जिसमें यह अपनो पिच्छिलता के कारण उनकी (२) गुलू-निर्यास की तरह का एक प्रकार का तीक्ष्णता को दूर कर देवे और तविश्रत पर उनको गोंद जो फारस आदि में क़ताद नामक वृक्ष से अधिक बोझ डालने से रोके । ( नकी ) प्राप्त होता है। इसके पीताभ श्वेत कड़े, स्वाद ___ यह प्रांतरिक अवयवों के रक्तस्राव का रोधक. एवं गंध रहित विविध आकार प्रकार के खंड होते पिच्छिलताकारक, रुधिर सांद्रकर्ता, कठोरता का हैं जिनका चूर्ण करना सहज नहीं । ये सुरासार उपशमनकर्ता और दोषों की तीक्ष्णता का शामक और ईथर में अविलेय होते हैं और जल में स्वल्प है तथा कास, नेत्ररोग, उरःकंठ की कर्कशता और विलेय होते है। जल में ये फल जाते हैं। वृक्ष के फुफ्फुसगत व्रण का निवारण करता है । (मु० विवरण के लिये "कताद" शब्द के अन्तर्गत देखें। ना०) कतीरा । कसीरा। यह रक्त को सांद्र करता और प्रायः स्रोतों के प्रतिनिधि-देशी कतीरा (गुलू निर्यास), मुख में चिपक कर सुद्दा डालता है; कठोरता को टूगाकंथ ( विलायती कतीरा ) और पीली कपास दूर करता, तीच औषधों को तीक्ष्णता का उपशका गोंद प्रभृति । | . मन करता है । यह आँतों को शक्ति प्रदान करता
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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