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________________ कतीरएहिंदी १६६३ कत रान कतीरए हिंदी-[फा०] पोली कपास का गोंद। कत्तावा-रज्ञा पु० दे० "कत्तारी"। कतीला-[?] दरदार। | कत्तृण-संज्ञा पुं॰ [सं० क्ली०] (१) रूसा नाम क़तीलुरंद-[अ० ] वटेर सुमानी को एक सुगंधित घास । रोहिष तृण । सोंधिया कत ना कतूबरी-[१०] इसबगोल का पौधा। घास । गन्धतृण । प० मु रा०नि० | भा० । कत रियून-[यू० ] जंगली खीरा । खयार सहराई । पृश्निपर्णी । पिठवन। यथा-"कत्तृणं तृणमित् फत र-[१०] [बहु० क़त रात ] वह तरल औषध प्रश्न्योः ।"-मे० णत्रिक । जो शरीर के किसी छिद्र, जैसे, कान आदि में कत्तोय-संज्ञा पु० [सं० की० (स्त्री०)] मद्य । बँद २ टपकाई जाय अथवा उसमें तूल वर्ति तर मदिरा । (२) मैरेय नामक मदिरा । त्रिका० । करके रक्खी जाय । बूंद बूंद डाली जानेवाली | कत्तहालु-[ कना०] गदही का दूध । दवा। कत्थ-सज्ञा पु० [हिं० कत्था ] दे० "कत्था" । कतूल-[?] केवाँच । कत्था-संज्ञा पु० [सं० क्वाथ ] (१) खैर । खदिरकत शा हूत-[ ? ] इंद्रायन का फल । (२) खैर का पेड़ । कथ-कीकर । दे० 'खैर" कतूस-[ नैपा०] हलोसरी (लेप०)। कत्थाचिनाई-संज्ञा पु. [ देश०] एक प्रकार का क़त स-[सिरि• ] सरख्स। कत्था जो अकोरिया गेम्बियर ( Uncaria कत्तइ तुल्लुवा-[ मल० ] जंगली तुलसी। gambier ) नामक एक प्रकार की नाजुक कत्तट्टी- मल० ] कचनार । लता से प्राप्त होता है। वि० दे० "खैर"। कत्तम- ता०] पटचउली (बं०)। कत्थील-संज्ञा पुं० दे० "कथील"। कत्तमणक-[ ता. ] जंगली रेंड़ । काननैरण्ड। . कत्थु ओलुपी-[ ते. ] बहेड़ा । विभीतक । कत्तर-[ आसाम ] अमलोसा । अम्ली। कत्थो-[द.] कत्था । खैर। कत्तरा असी-बर०] कीर । कील । अलकतरा । कफ-[अ.] बथुआ । वास्तुक । (Pix Liquida ) Tar करफ बहरी-[१०] (१)देशी बथुश्रा । बथुश्रा हिंदी । कत्तराम-तुलसी- मल० ] रामतुलसी। (२) सन । कत्तरोदु-[ सिंगा० ] अपराजिता । करफ रूमी-[अ० ] जीवंती। .] अपराजिता के बीज । करः , कर फा-अ.] बथुश्रा । कत्तवला-[ ] गुम्मडु । क़त्वत: दे. “कतन्तः"। कत्तान-[अ०, फ्रा० ] तीसी । अलसी । अतसो । कबूस-[सिरि० ] सरख्स । कत्तान मुसहिल-[अ.] रेचनातसी। क़त्म-[अ.] पुराने दुबे का गोश्त । (Linum Catharticum) Purgi- | कर मीर-[अ० ] जंगली भाँग । ngflax क़तरा:-[ ? ] कौश्रा। कत्तानुल माऽ-[अ० ] काई। कत्र बंग-[ ? ] कीड़ा मार । कत्तालि-[कना• ] छोटा ग्वार । कत्र मक्का-संज्ञा पुं० [अ० इल क्रातिरुल मक्की ] कत्तारो-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का मझोले । हीरा दोखी । दम्मुल अखवैन । श्राकार का सदाबहार वृक्ष जिसकी टहनियाँ बहुत | कतरस-[?] अच्छा ताँबा । लम्बी और कोमल होती है और इसके पत्ते प्रायः क़त्रहे ऐ निय्य:-[१०] अाँख में टपकाने की दवा । एक बालिश्त लंबे होते हैं। इसमें जाड़े में फूल | आँख धोने की दवा । गुसूलुल् ऐन । Collyrलगते हैं । हिमालय में हज़ारा से कुमायूँ तक, ium, Eyedrop. ५००० फुट की ऊंचाई तक, और कहीं कहीं छोटा क़त् रान-संज्ञा पु. [१०] एक प्रकार का कालापन नागपुर और आसाम में भी इसके पेड़ पाये जाते लिये भूरे रंग का सांद्र वा अर्द्ध तरल अलकतरे हैं। कत्तावा। की तरह का पदार्थ जो विशिष्ट गंधि एवं सुगंधि ३. फा.
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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