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________________ क़ताद १६६० कतीरा कारण वृक्ष अत्यन्त भयावह प्रतीत होता है। इसी परन्तु 8-१० तोले से अधिक न पियें। इसकी हेतु किसो कठिन कार्य करने के समय 'नितुल जड़ में इतना स्नेहांश होता है कि बिना तेल के क़ताद' अर्थात् क़ताद का काँटा कठिन है, ऐसा यह मसाल की तरह जलती है। ख०म०। कहते हैं। क़तान-) [१०] धूलि | गई। __ क़ताद के पेड़ (शजे क़ताद) ईरान और क़ताम-" हेरात में बहुतायत से होते हैं । उक्त स्थान-भेद से क़ताम-[१०] एक श्यामवर्ण का चौड़ा विंदु, जो ही क़ताद के भी दो भेद यूनानी ग्रन्थों में स्वीकृत अांख के काले भाग पर धूएँ के समान पैदा हो किये गये हैं, यथा-हेराती कतीरे का वृक्ष- जाता है । गुब्बार चश्म । Penis दरख्त कतीरा हेराती अर्थात् कोन जिसे लेटिन में क़तामियून-[सिरि०] मिश्केतरामशीथ । ( Agtragalus Heraten sis, Bu- क़तायिफ-[१०] (१) एक प्रकार की रोटी । (२) nge) कहते हैं और (२) कुम, बालिशे- रोगनी रोटी । आशिकाँ (क्रा०), मिस्वाकुल अब्बास (अ.) क़तायस-[ ? ] वनपलाण्डु । काँदा और A stragalus sp of (Astrag- कतारा-संज्ञा पुं॰ [सं. कान्तार, प्रा० कंतार ] [स्त्री० alus Strobiliferus Royle ) अल्पा० कतारी ] एक प्रकार की लाल रंग की ऊख -ले । जो बहुत लम्बी होती है । केतारा। गीलानी के अनुसार उक्र वृक्षों में चीरा देने से संज्ञा पु० [हिं० कटार Jइमली का फल । गुलू-निर्यासवत् एक प्रकार का गोंद निकलता है, कतारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कतारा ] कतारे की जाति जिसे पारस्य देशवासी 'कतीरा' नाम से अभिहित की ईख जो उससे छोटी और पतली होती है। करते हैं । एलोपैथीय चिकित्सा में प्रयुक्त 'टूगा- कतिद-01 [ बहु० अक्ताद] (1) कंधा । कंथा' भी कताद की ही जाति के एक वृक्ष का ___ स्कंध । (२) कंधे से पृष्ठवंश तक का भाग। गोंद है जो Astragalus Gummi (३) दोनों कंधों के मिलने की जगह । fera) नामक वृक्ष से प्राप्त होता है। इसके वृक्ष एशिया-माइनर में होते हैं। वि० दे० कतिफ-[अ०] [ बहु० अक्ताफ़ ] कंधे की हड्डी। स्कंधास्थि । शाना । 'कतीरा'। शिम्बी वर्ग कतिरान-[अ० ] दे॰ “कृत रान"। ( N. O. Leguminosae.) क़तीदाउक़तीरा-[यू. ] अफीम । अहिफेन । गुण-धर्म तथा प्रयोग क़तीदऊस, क़तीदाउस-[यू० ] इलायची । एला । यूनानी मतानुसार क़तीफः-अ] मनमल वा रोएँदार कपड़ा। प्रकृति-द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष है | कतीरा-संज्ञा पुं॰ [फा०] एक प्रकार का खूब सफेद इख्तियारात के लेखक के मत से उष्ण और तर ____ गोंद जो गुलू नामक वृक्ष से निकलता है और . है । शेख द्वारा लिखित कानून के एक प्राचीन गोंदों की भाँति इसमें लसीलापन नहीं होता और योग में यह शीतल और तर उल्लिखित है । किसीर न यह पानी में घुलता है । कुल्ली का लासा । वि. के मत से इसका वृक्ष तो शीतल है, परन्तु जड़ दे. “गुलू"। अत्यन्त उष्ण होती है। कतीरा-संज्ञा पुं॰ [फा०] (1) गुलू नामक वृक्ष गुण, कमें, प्रयोग-इसकी जड़ को घिसकर का गोंद जो खूब सफ़ेद होत है और पानी में सिरके या शहद के साथ व्यङ्गादि पर या अन्य घुलता नहीं । और गोंदों की भांति इसमें लसीदागों पर लगाने से वे दूर हो जाते हैं। इसके लापन नहीं होता | बोतल में बंद करके रखने से पत्तों को कथित कर खाँड़ मिलाकर पीने से पुरा- इसमें सिरके की सी गंध आ जाती है। प्रसवोत्तर तन गरम खाँसी में बहुत उपकार होता है । इससे इसे स्त्रियों को खिलाते हैं। यह बहुत ठंढा समझा कृच्छ श्वास और उरःक्षत को भी लाभ होता है। जाता है और रक्तविकार तथा धातु विकार के
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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