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________________ कटसरैया १९३५ आरूष वर्ग ( N. O. Acan thaceae ) उत्पत्ति स्थान — उपोष्णकटिबंधस्थित भारत, उत्तर पश्चिम हिमालय, सिकिम, खसिया, मध्य भारत, नीलगिरि तथा भारतीय उद्यान । गुणधर्म तथा प्रयोग श्रायुर्वेदीय मतानुसारश्रर्तगला कटुस्तिक्ता कफमारुतशूलनुत । कण्डूकुष्ठ व्रणान्हन्ति शोफ त्वग्दोष नाशनी ॥ ( रा० नि० १० व० ) नीली कटसरैया - कड़वी एवं चरपरी है तथा कफ, वात, शूल, कण्डू ( खाज ), कोद, व्रण और स्वगू दोष को नष्ट करती और सूजन उतारती है। 'नीलः कुरण्टक' स्तिक्तः कटुर्वातकफापहः । शोथकण्डू शूल कुष्ठ व्रत्वग्दोषनाशनः ॥ ( निघण्टु रत्नाकर: ) नीले फूल की कटसरैया -- कड़वा, चरपरी तथा वात, कफ, सूजन, खुजली ( कण्डू ), शूल, कोद, मण और स्वचा के विकारों को दूर करती है, । नीलटी तु कटुका तिक्ता त्वग्दोषनाशिनी । दन्तरोगं कफं शूलं वातं शोथं च नाशयेत् ॥ काले फूल की कटसरैया — चरपरी, कड़वी तथा त्वग्दोष, दन्तरोग, कफ, शूल, वात और सूजन को दूर करनेवाली है । काली कटसरैया के वैद्यकीय व्यवहार वाग्भट - वातज क्षयरोग में श्रार्त्तगल-नीलमिंटी के क्वाथ और कल्क द्वारा सिद्ध किया हुआ - घृत क्षयजित् और स्वरवर्द्धक है । यथा"साधितं (घृतं ) कासजित् स्वय्यं सिद्धमार्तगलेन वा" ( चि० ५ ० ) चक्रदत्त - ( १ ) सिध्मनाशार्थ नीलमिटिका पत्र-स्वरस - सिध्म-कुष्ठ विशेष के प्रशमनार्थ नीली कटसरैया की पत्ती का रस गात्र पर भली प्रकार लेपन कर ऊपर से काँजी में पिसे हुये मूली के बीजों का प्रलेप करें। यथा "नील कुरण्टकपत्रं स्वर सेनालिप्य गात्रमतिव कटहल हुशः । लिम्पेनमूलक वीजैः पिष्टैस्तक्रेण सिध्म ( कुष्ठ - चि० ) (२) दन्तचालन अर्थात् दाँत हिलने पर तंगलदल - नीली कटसरैये की पत्ती के काढ़े से गण्डूष करने से हिलते हुये दाँत ( चलदंत ) स्थिर हो जाते हैं । यथा नाशाय ।। " “आर्त्त गलदलक्काथगण्डूषो दन्तचालनुत्” ( दन्तरोग - चि० ) । नव्य मत वैट - इसका बीज सर्प दंश का अगद ख्याल किया जाता है। शोथ निवारणार्थ इसकी पत्ती एवं जड़ का उपयोग होता है । कफ (Cough) में इसका फांट दिया जाता है । इं० मे० प्रा० । कटसारिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] झिटी का सामान्य नाम | कटसरैया । भा० पू० १ भ० । सिरिस - [ श्रवध ] धोबिन । कटसोन -संज्ञा पु ं० [देश० कुमा० ] एक झाड़ीनुमा वृक्ष जो पश्चिमीघाट, मध्य, पूर्वी और उष्ण हिमालब नेपाल, सिकिम, वरमा श्रादि स्थानों में होता है। शाखाओं पर पीला रोयाँ और छोटे कांटे होते हैं । फूल सफेद | फल गोल । कटसोल । कटसोल - संज्ञा पु ं० [देश० ] दे० "कटसोन" बोपेम काँटा - नेपा० Rubus-moluccanus, Linn. कटहर - संज्ञा पु ं० दे० ' कटहल " । कटहरा - संज्ञा स्त्री० [देश० ] एक प्रकार की छोटी मछली जो उत्तरी भारत और आसाम की नदियों में पाई जाती है। कटहरिया चंपा - संज्ञा पुं० [हिं० कटहर + चंपा ] एक प्रकार का चंपा । मदनमस्त । कटहल - संज्ञा पु ं० [सं० कंटकिफल, हिं० काठ + फल ] (१) वृक्ष - ( उत्तराषाढ़ा ) स: ( फनसः ) महासर्जः, फलिनः, फलवृतकः, स्थूलः, कण्टफलः, मूलफलदः' अपुष्पफलदः पूतफलः, अङ्कमितः ( रा० नि० ११ व० ), कण्टकिफलः, कण्टाकालः, श्राशयः, सुरजफलः, पलसः, फलसः, चम्पा कालुः, चम्पा, कोषः, चंपालुः, रसालः, मृदङ्गफलः, पानसः, पनशः (सः) पणशः
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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