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________________ कटसरैया १६३४ कटसरया सू· । कोइल्का- उदि० । काला बाँसा -30 "अथवासैर्यकान्मूलं सक्षौद्रं तण्डुलाम्बुना"। प० सू० । (उ०३८ प्र०) __ आटरूषवर्ग नादकर्णी-शुक्रप्रमेह में इसकी पत्ती के रस में N. O. Acan thaceae. जीरा मिलाकर देते हैं। हाथ-पैर का (Carac. गुणधर्म तथा प्रयोग king & laceration ) रोकने के लिये आयुर्वेदीय मतानुसार वर्षा ऋतु में हाथ-पैर पर इसको पत्ती का रस लगाया जाता है । दांतों से खून प्राने पर इसके रस झिण्टिकाः कटुकास्तिक्ता दन्तामयशान्ति में शहद मिलाकर देते हैं । कर्णप्रदाह ( Olitis) दाश्च शूलधन्यः । वातकफ शोफकास वग्दोष में यह रस कान में भी डाला जाता है।विनाश कारिण्यः॥ इं० ० मे० पृ० १०३-४ । (रा०नि० १० व०) (४) नोले फूल की कटसरैया-इसका तुप सफेद कटसरैया-चरपरी, कड़वी और वात श्वेत झिण्टी की अपेक्षा किंचित् उच्चतर होता है। कफ नाशक है तथा यह दन्तरोग, शूलरोग एवं शाखा-बहु, सरल, कर्कश, गोल, ग्रंथियुक और सूजन कास और चर्म रोग को नष्ट करती है। ग्रन्थिका उपरि भाग किंचित् स्फीत । पुष्पदण्ड, सैरेयक: कुष्ठधातास कफकण्डूविषापहः । पत्रवृन्त सन्निधान से एवं शाखाग्र से वक्रभाव में वहिगत होता है । वक्र पुष्पदण्ड के उपरि भाग तिक्तोष्णो मधुरो दन्त्यः सुस्निग्धः केशरञ्जनः ।। पर अर्थात् कुण्ड के पृष्ठ पर पुष्प सनिवेषित होता (भा०) है। पुष के लिये ही इसे बगीचों में लगाते हैं। सफेद कटसरैया तिक, उष्ण, मधुर, दाँतों को पुष्पकाल-शीतऋतु, पुष नीलाम्लान । उज्ज्वलहितकारी, सुस्निग्ध और केशरञ्जक-बालों को नील पुष्पीय मिण्टी का फूल पत्र-कक्ष में लगता रंगने वाली है तथा यह कोढ़, वात, (बादी), है, पुष्प का कुण्ड कण्टकित और पत्र रोमान्वित रुधिर के दोष, कफ, खुजली और विष इनको नष्ट होता है। करती है। पर्याय-नीलपुष्पा, दासो, नीलाम्लानः, 'श्वेतकुरण्टक' स्तिक्तः केश्यःस्निग्धोलघुस्मृतः । च्छादनः, वला, प्रार्तगला, नीलपुष्पा, नीलझिण्टी कंटुश्चोष्णो दन्तहितो बलीपलित नाशनः ।। नील कुरण्टः, (कुरुएटकः) नीलकुसुमा, बाणः, कुष्ठवात रक्तदोषं कर्फ कण्डू विषन्तथा। बाणा, कण्टार्तगला (रा०नि०) प्रार्तगतः, नाशयेहारुणश्चैव ऋषिभिः परिकीतितम् ॥ दासी, (भा०) बाणपुष्पः,सहचरः,सहचरा,सहचरी, (निघण्टु रत्नाकरः) नोलपुष्पः,सैरीयः, सैरीयकः(प० भु०) कण्टाईलता कण्टार्गलः, बाणी, नीलपुष्पी, शैरीयकः, शैरेयक, सफेद फूल की कटसरैया-कड़वी, केशों को सैरेय-सं० । काली कटसरैया, काला (पिया) हितकारी, स्निग्ध, मधुर, चरपरी, गरम, दांतों को वाँसा, कटसरैया-हिं० । नील माँटी-बं० । कालाहितजनक, तथा वली (देह पर झुर्रियां पड़ना) कोण्टा-मराका करियगोटे-कनाबालेरिया पलित (असमय में बाल पकना) कोढ़, वात, सोरुलिया Barleria Caerulea(नीलपुष्प, रक्रविकार, कफ, कण्डू, विष और घोर वेदना को च्छादन) वार्लेरिया क्रिष्टेटा Barleria Criहरनेवाली है। stata, (उज्ज्वल नीलपुष्प वा दासी)बालेरियावैद्यक में सफेद कटसरैया के व्यवहार ष्ट्रिगोसा Barleria Strigosa, Willd वाग्भट-चूहे के विष में सैरेयक मूल-चूहा | ले । तदरेलु (बाजारू नाम-वाँसा सियाह) काटने पर सफेद कटसरैये की जड़ पीसकर मधु पं० ।गोर्प-जीभ, काला बाँस (बाण)उ०५० सू०। और तण्डुलधावन मिलाकर पियें । यथा- कोइल्का-इदि।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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