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________________ कटसरैया १६३३ कटसरैया कटसरैया धर्मकारक एवं कफनिःसारक है ।फा० इं०३ भ०, पृ. ४४।। डाक्टर थाम्पसन-यह शिश्वतिसार एवं कफ ' (Cough ) में उपकारी है। डा. सध्यवर्ट-फिरंग जनित विकारों में परि. वर्तकरूप से इसका व्यवहार होता है। ___ सखाराम अर्जुन-मसूढ़ों की पुष्टि के लिये एवं कृमि भक्षित (Caries) दंतशूल निवारणार्थ इसकी कषेती पत्तियों और साधारण लवण का दंतमंजन बनाते हैं। नादकी-इसकी पिसी हुई पत्ती वा पत्रस्वरस अकरकरे के साथ वा अकेला शूलयुक्त दंतकोटर में स्थापित किया जाता है। इ० मे० मे० पृ० १०४। जंगलनी जड़ी बूटी नामक गुजराती ग्रंथ के रचयिता के अनुसार पीली कटसरैया के पत्ते और अकरकरा को सम्मिलित पीसकर डाढ़ के नीचे रखने से डाढ़ का दर्द तत्काल दूर हो जाता है। इसी प्रकार से दाँतों से खून गिरना भी इससे बंद हो जाता है। चोपरा के अनुसार जुकाम, खाँसो और सर्वांगीण शोथ में यह गुणकारी है। (२) लाल फूल की कटसरैया-पीतझिण्टीवत् भेद केवल यह है कि इसका फूल लाल होता है। यह सर्वत्र सुलभ नहीं है। पाय-रक्राम्लानः, रक्सहाख्यः ( रकसहा, रकसहः) अपरिम्लानः, रक्कामलान्तकः, रकप्रसवः, कुरुबकः, रामालिंगनकामः, (-कामुकः ), रागप्रसवः, मधूत्सवः, प्रसवः, सुभगः, भसलानन्दः, (भ्रमरानन्द ) शोणो, कुरबकनाम्नी, कण्टकिनी, शोणझिण्टिका, (रा० नि.), कुरबकः, (ध०नि०), कुरवकः, पाठांतर से कुरुबकः (भा०), रक्काम्लानकः, रनकुरुण्टकः, (वै० निघ० ), शोण झिण्टी (अम०), रकाम्लानपुष्पवृत, रक्क पुष्पझिण्टी तुप, कुरवः, कुावकः (श०२०), कण्ट कुरएटः (वै० निघ०), रक्तपुष्प, रनझिएटी, रकझिण्टिका,-सं० । लाल कटसरैया, कटसरैया -हिं० । लाल झाँटी, रकपुष्पझाँटीगाछ, रक्तझाँटी, लालझाँटी-फुलेरगाछ-वं० । वाण झाड़-मरा० । वणदगिडु-कना० । बालेरिया सिलिएटा BarTeria ciliata, Roxb.-otol कटसारिका वा आटरूष वर्ग (N. 0. Acanthaceae. ) ___गुण-धर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारउष्णः कटुःकुरबको वातामयशोफनाशनोज्वरनुत् आध्मानशूल कासश्वासाति प्रशमनो वयः ।। . (रा. नि० व०१०) लाल कटसरैया-गरम, चरपरी और रंग को निखारनेवाली ( वर्ण्य ) है तथा वायु के रोग, सूजन, ज्वर, श्राध्मान, शूल रोग, कास और श्वास इनको उपशमित करती है। 'रक्त:कुरण्टक' स्तिक्तोवण्यश्चोष्णः कटुः स्मृतः शोथं ज्वरं वातरोगं कर्फ रक्तरुजन्तथा। पित्तमाध्मानकं शूलं श्वासं कासञ्चनाशयेत् । (निघण्टुरत्नाकरः) लाल फूल को कटसरैया-कड़वी, वर्ण को उज्ज्वल करनेवाली, गरम, चरपरी, तथा सूजन, ज्वर, वातरोग, कफ, रविकार, पित्त, प्राध्मान, शूल, श्वास और खाँसो को दूर करनेवाली है। ३-सफेद फूल की कटसरैयापर्या-सेरेयकः, सैरेयः, सहचरः, सहाचरः, (ध० नि०) झिण्टिका, कण्टकुरुएटः, सैरेयकः, (रा०नि०) सैरेयकः, सरेयः, श्वेतपुष्पः, कटसारिका, सहचरः, सहाचरः, भिंदी, (भा०), सोरीयकः, सैरीयः, सैरीयकः, (अम० ) श्वेतकुरुण्टकः, (वे० निघ०) सौरेयः, सौरेयकः, कण्टसारका, सचरः, सैर्यः, सैर्यकः, सहा (स ). श्वेत झिण्टी, शुक्रझिण्टी, झिण्टी, झिण्टिरीटिका, महासहः, मृदुकण्टबाण, उद्यानपाकी झिण्टिका, सं० । सफेद कटसरैया, कटसरेया, हिं० । झांटी गाछ, कुलझाँटी श्वेतझांटी, सादाझांटी, -बं० । झिंटी-अासाम । बालेरिया डाइकोटोमा Barleria Dicho toma, Roxb. -ले० । तरेलु, चं० (बाँसा स्याह-बाजा० ) गोर्प जिब, काला वाँस -उ. प.
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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