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________________ कच्चा मोतियाबिंद १९१६ कच्छ जमा हुश्रा माढ या कीचड़ कपड़े में बंध नीचे के वृत । (४) धोती का वह छोर, जिसे दोनों गढ़े में रात भर लटकाया जाता है। सवेरे उसे टाँगों के बीच से निकाल कर पीछे खोंस लेते हैं। राख पर फैला धूप में सुखाने. ( कच्चा-नोल लाँग । परिधानाञ्चल । हे० च०। (५) जलबनता है। प्रांत । जलमय देश वा स्थान । अमः । (६) कच्चा मोतियाबिंद-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+मोतिया- नदी आदि के 'कनारे की भूमि । कछार । (७) बिंद ] मोतियाबिंद का वह भेद जिसमें रख की कच्छदेश का घोड़ा। (८) कछुए का एक अंग। ज्योति सवथा नष्ट नहीं हो जाती, केवल धुधला | (१) एक प्रकार का कुष्ठ । दे. “कच्छक"। दिखाई देता है । ऐसे मोतियाबिंद में नश्तर नहीं सज्ञा पुं० [सं० कच्छप ] कछुआ । लगता। वि० [सं० वि.] जलप्रान्त सम्बन्धी । जलकच्चा शोरा-संज्ञा पु० [हिं० कच्चा+शोरा ] वह शोरा मय देश का । "नदीकच्छोद्भवं कान्त मुच्छ्रितं जो उबाली हुई नोनी मिट्टी के खारे पानी में जम ध्वजसान्नभम्"। भारत, सम्भव ७० अ०। जाता है । इसीको फिर साफ़ करके कलमी शोरा कच्छक-संज्ञा पुं॰ [सं० ०] (१) तुन । तुन्द । बनाते हैं। तुनक द्रुम । तूणी। कच्ची-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री ] एक प्रकार का कंद । __ संज्ञा पुं॰ [सं. क्री० ] अट्ठारह प्रकारके कुष्ठों अरुई। में से एक, जिसे "कच्छत्वक” कुष्ठ भी कहते हैं । कची वली-संज्ञा स्त्री. (१) वह कली जिसके खिलने में देर हो। मुंह बँधी कली। (२) लक्षण-यह कफ दोष से उत्पन्न होता है अप्राप्त यौवना । और प्रायः ऊरु, कक्ष और कटि प्रदेश में होता है। यह लाल, चिकना, घना श्यामवर्ण का होता है. कची चाँदी-संज्ञा स्त्री. चोखी चाँदी। खरी चाँदी । जिसमें अत्यन्त खाज होती है। इसे देश में भंसा .. नुकरए “खाम" । दे० "चाँदी'। दाद भी कहते हैं । यथाकच्ची चीनी-संज्ञा स्त्री० वह चीनी जो गलाकर खूब साफ़ न की गई हो। "रक्तस्निग्धं घनश्यामं मतिकण्डूकफोद्भवम् । कच्ची शक्कर-संज्ञा ली. वह शक्कर जो केवल राब को ऊरुकत कटिष्वेवं कच्छत्वक् कुष्ट काह्रम्" ॥ ___ जूसी निकालकर सुखा लेने से बनती है । खाँड़। बसव रा० १३ प्र० पृ० २०६, २१० । कञ्चीर-संज्ञा पुं॰ [सं०] कुचला। कच्छकाण्डन-संज्ञा पुं० [सं० पु.] पीपलभेद । कच्चू-संज्ञा स्त्री० [सं० कंचु] (१) अरुई । अरवी । अश्वत्थ वृक्ष भेद । गया अश्वत्थ । घुइयाँ । (२) बंडा । कचु । कच्छांटका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कच्छ । परिकच्चूर-संज्ञा पु० [सं. पु.] कचु नामक एक धानाञ्चल | कछनी। काँछ। लाँग। श० र०। प्रकार का कंद शाक । कचु गाछ-(बं०)। संस्कृत पाय-कच्छ । कक्षा । कच्छा । घुइया । बंडा। कच्छीटिका । कच्छाटिका। कच्चूरी कि.जङग-मल.1 कचूर । कच्छत्वक-संज्ञा पुं० [सं० की०] एक प्रकार का कच्चार-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री०] शटी। कचूर । ५० कुष्ठरोग । ब. रा०। कच्छन-थरइ-ता०] जीम-हिं०. बं०। झरसीकचोरक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] गंधशटी। गंध. मरा०। पलाशी । चक्र०। कच्छप-संज्ञा पुं० [सं० पु.] [ स्त्री० कच्छपी] कचौलम्- मल.] कचूर । (१) कछुना | कूम्म। रा०नि० व. १६ । कच्छ-संज्ञा पु. [सं० पु.] (१) जलप्राय देश। अत्रि २२ अ० । विशेष दे. "कछुआ"। (२) अनूपदेश । दे० "अनूप" । (२) तुन का पेड़। तुन का पेड़ । तुन्द । नन्दी वृक्ष । रा० नि० व. तुन्द । तुम्नक द्रुम । मे० छद्विकं । (३) नन्दी १२ । (३) एक प्रकार का वारणी यंत्र, जिससे
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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