SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कच्छप यन्त्र १९१३ 1 मद्य खींचा जाता है । मदिरा यन्त्र | श० च० । एक प्रकार का तालुगत रोग, जिसमें कफ के कारण तालु में कछुए की पीठ के आकार की ऊंची श्रीर नीची पीड़ारहित तथा देर से बढ़नेवाली सूजन होजाती है । यथा-' - "कूम्मोत्सन्नोऽवेदनोऽशीघ्र जन्मा रोगोज्ञेयः कच्छपः श्लेष्मलः स्यात्” । कच्छप-यन्त्र-संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] श्रौषध पाक यन्त्र विशेष । श्रौषध पाक करने का एक प्रकार 1 का यन्त्र | कच्छपि संज्ञा पुं० [सं० पु० ] एक प्रकार का क्षुद्र रोग | तालु रोग जो तालु में होता है । कच्छपिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) विषमुष्टि कुचला । ( २ ) महानिम्ब । महानीत्र । रा० नि० व० ४ । ( ३ ) कृष्ण निर्गुडी । काला सँभालू | वै० ० । ( ४ ) एक प्रकार का क्षुद्ररोग, जिसमें ५-६ फोड़े निकलते हैं जो कछुए की पीठ ऐसे होते हैं । मा०नि० । ( ५ ) प्रमेह के कारण उत्पन्न होनेवाली फुड़ियों का एक भेद । ये फुड़ियाँ छोटी-छोटी शरीर के कठिन भाग में कछुए की पीठ कार की होती हैं । इनमें जलन होती है । कच्छपी | मा० नि० । मुख के मत से कच्छपिका दाहयुक्त एवं कच्छपाकृति की होती और कफ तथा वायु से उत्पन्न होती है । भावप्रकाश के लेखानुसार इस रोग में प्रथमतः स्वेद क्रिया करें, फिर हलदी, कुठ, शर्करा, हड़ताल और दारूहल्दी इनको पीसकर लेप करें । पकने पर व्रण की भाँति चिकित्सा करें । | कच्छपी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] की स्त्री । मादा कछुआ । कछुई । एक प्रकार का क्षुद्र रोग । मे० "कच्छपिका " । कच्छपोलिकच्छपोलिका कच्छमाही - संत स्त्री० फ्रीन । | संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री ] जलबेंत । जलवेतस | वै० निघ० । [ सं० कच्छ + माही= ] एक प्रकार की मछली । सूँस । दुल ( १ ) कच्छप म० । ( २ ) पत्रिकं । दे० २१ फा० कच्छु कच्छरा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] दुरालभा । के० । कच्छरहा -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) दूब । दूब । जटा ० । (२) नागरमोथा | नागरमुस्ता । "नागरोत्था कच्छुरुहा " । रा० नि० ० १३ । कच्छल कारक -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] क.स | कारा तृण । ) ( १ दूब । भद्र मुस्ता । श्वेतदूर्वा । कच्छा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] नागरमोथा । (२) सफेद (३) एक प्रकार का कीड़ा । झींगुर । चोरिका । चीड़ा | भिपोका ( बं० ) । ( ४ ) बाराही कंद | मे० छद्विकं । ( ५ ) परिय चंचल | कच्छ । लाँग । वस्त्र का कच्छाटिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कछनी । परिधानाञ्चल | कच्छ । लाँग । कच्छान्तरुहा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] सफेद दूब | श्वेत दूर्वा । रा०नि० ० ८ । कच्छारुहा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] पीला वा सुनहला केवड़ा | स्वर्णकेतकी । वै० निघ० । कच्छालङ्कारक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] काँस । काश तृण । कच्छी-संज्ञा पु ं० [हिं० कच्छ ] घोड़े को एक प्रसिद्ध जाति जो कच्छ देश में होती है । इस जाति के घोड़ों की पीठ गहरी होती है । वि० [हिं० कच्छ ] ( १ ) कच्छ देश का । ( २ ) कच्छ देश में उत्पन्न । कच्छीर-संज्ञा पु ं० [सं०] कच्छु -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) शुद्र कुष्ठ के अन्तर्गत एक प्रकार का रोग वा खुजली । खजू रोग | खाज | कच्छू । लक्षण - सूक्ष्मा वह्नः पिड़का: स्राववत्य: ण मेत्युक्ताः कण्डुमत्यः सदाहाः सैवस्फीस्तीन दाहैरुपेता ज्ञेया पाण्योः कच्छुरुग्रास्फिचोश्च”॥ मा० नि० । अर्थात् — खाज, दाह और स्रावयुक्त सूक्ष्म जो बहुसंख्यक पिड़काएँ - कुन्सियाँ निकलती हैं, उसे विद्वान 'पामा' कहते हैं । पुनः दोनों हाथ और हथेली की पीठ पर होनेवाली तीव्र दाहयुक्त पामा ही 'कच्छु' कहलाती है । 1
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy