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________________ कचरक १६११.. कबानील नुबंधी स्वग रोग उत्पन्न हो जाता है, उसके प्रति- हिमालय के जगलों में होता है। ( Mimosa काराथं प्यहार किये जानेवाले सौंदर्यबर्द्धनीय | lucida, Roxb.) (Cosmeties) वा अंगरागलेपन औष- कचोरम्-[ से० ] कचूर । धादि का यह एक सुगंधिजनक उपादान है। कचोरम्-[ते. ] कवूर । इसकी ताज़ी जड़ के उपयोग से सूज़ाक और श्वेत- कचोरा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] एक प्रकार का शालि प्रदरजात प्रत्राव रुक जाते हैं । शिशुओं के कृमि धान्य । यह पित्तनाशक है ।प्रत्रि० सं० १५०। रोग में इसको जड़ का स्वरस दिया जाता है। संज्ञा पुं॰ [सं० कचूर ] कचुर। इसे प्रायः अन्य औषधियों के साथ व्यवहार करते | कचोगलु-[ते. ]कवूर।। हैं। यह औषधीय तैलों में पड़ता है। जलोदर में | कचोलम्-[ मल० ] कचूर ।। इसकी पत्ती का स्वरस दिया जाता है । इसकी कचौड़ी-संज्ञा स्त्री दे० "कचौरी"। सूखी हुई जड़ के चूर्ण में पतंग की लकड़ी | कचौर-म०] ) (Wood of the Cesalpinia Sapp- | an) का चूर्ण मिलाने से एक प्रकार का लाल कचौरमु-ते. कचूर । कचूर । कचौरा-[ कना०] ) रंग का चूर्ण प्राप्त होता है, जिसे 'अबीर' कहते कचौरा संज्ञा पुं० [हिं० कचौरी] एक प्रकार की हैं। होली के त्यौहार में इसे पानी में घोलकर पूरी। शरीर पर छिड़कते है। ई० मे० मे० पृ. २७६ संज्ञा पु[ म०, को, हिं० ] कचोर । २८० । ई० ई० डू० एरड प्लांट्स-नगेन्द्रनाथ (Mimosa lucida, Roxb.) सेनकृत, पृ० ५३१ । कचोरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कचरा ] पिष्टक विशेष एक संज्ञा पु० [बं०, म.] कचूर । कचूर । प्रकार को पूरी जिसके भीतर उरद आदि की पीठी संज्ञा पुं० [पं०] कपूर कचरी। भरी जाती है। यह कई प्रकार की होती । जैसेकचूरक-संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] कचु नाम का एक सादी, खस्ता श्रादि । संस्कृत में इसे 'पूरिका' कहते कार का कंदशाक । कच्चूर । घुइयाँ । वै० निघ० हैं। दाल-पूड़ी। कचौड़ी। २ भ० अर्श-चि० पिपीलिका तैल । कच्चट-संज्ञा पु • [सं० क्री० ] जलपिप्पली। जलाकचूर कच-संज्ञा पुं॰ [देश॰] कपूरकचरी । शेदूरी (हिमा०)। पीपर । काँचड़ा-(बं.)। कचूर कचु-संज्ञा पुं० [पं०] कपूरकचरी। | कच्चर-संज्ञा पु० [सं० की. 1 तक। छाछ । मट्ठा । मे. रत्रिक। कचूरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कबूर ] कपूर हिंदी। कचूल कलङ्ग-[ मल०, ता. चन्द्रमूल (हि.)। वि० [सं० त्रि० ] मलिन । मैला कुचैला । चन्द्रमूल । चंद्रमूलिका (सं.)। कपूर कचरी गर्द से भरा हुआ । मल से दूषित । (गुज . ) ( Kem pferia galanga; | कच्चा कोढ़-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+कोढ़ ] (१) Linn.) खुजली । (२) गरमी । प्रातशक । कचेरुक-संज्ञा पु० [सं. पु.] कसेरू । कशेरू । | कच्चा चूना-संज्ञा पु० [हिं० कच्चा+चूना ] चूने की र०मा०। कली जो पानी में बुझाई न गई हो। कली का कचैटा-[?] अगलागल । किंगली (हिं.)। चूना। कचैतुन-[ ? । फेकिअल । श्रासुगाछ (आसाम)। । कच्चा नील-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+नील ] एक कचेरा-संज्ञा पुं॰ [ बम्ब० ] कसेरू । प्रकार का नील । नीलबरी । कचोड़ी-संज्ञा स्त्री० दे० "कचौरी"। ___ इसके प्रस्तुत करने की रीति इस प्रकार हैकचोर-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कचूर । कचूर । वै० कोठी में मथने के पीछे गोंद मिले हौज़ में नील निघ० २ भ० अर्श-चि० भल्लातक-हरीतकी। छोड़ते हैं। नील के नीचे बैठ जाने पर पानी को संज्ञा पुं॰ [हिं०, बम्ब० ] एक पौधा जो हौज़ के छेद से निकाल देते हैं। फिर नील का
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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