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________________ १८४६ औकांतुस्सनः (औ) औ-संस्कृत वर्णमाला का चौदहवाँ और हिन्दी वर्ण परिणाम स्वास्थ्य होता है, ये चार काल नियत माला का ग्यारहवाँ स्वरवर्ण । इसके उच्चारण का | किये हैं। स्थान करठ और श्रोष्ठ है। यह स्वर अ+यो के (१) इब्तिदा-आदि वा प्रारम्भ अर्थात् संयोग से बना है। रोगारम्भकाल | यह वह समय है जिसमें व्याधि संज्ञा पुं० [सं० पु.] अनन्त । शेष।। उत्पन्न होती है। संज्ञा स्त्री० [सं०स्त्री.] विश्वंभरा । पृथ्वी । (२) तज़'युद, तज़ायुद-वर्धन अर्थात् औइ.य:-[अ० बहु०] [विभाऽ ए० व० ] (१) रोग वृद्धिकाल । यह वह काल है जिसमें प्रतिक्षण पात्र । बरतन । (२)तिबकी परिभाषा में शरीर रोग का वेग बढ़ता है। के आभ्यंतरिक कोठवाश्राशय । जैसे. प्रामाराय । (३) इंतिहा-अर्थात् रोग के बढ़कर ठहरने परन्तु इसका प्रयोग उरूक अर्थात् रगों के लिये भी का समय । यह वह समय है, जिसमें रोग एक होता है। वासा Vasa-ले। कन्वात । हालत पर ठहरा रहता है अर्थात् न घटता है और . औइ यतुरूह.-[अ०] रूह. का कोठ। इससे हृदय न बढ़ता है। ___ और धमनियाँ अभिप्रेत हैं। (४) इनहितात--रोगावसान वा रोगशमन और यहुल औइ.य:-[अ०] उरूक़ दम्वियः अर्थात् काज अर्थात् रोग घटने का समय । यह वह सयय धमनी और शिरा की वे छोटो-छोष्टी रगें जो पोष- है लि.समें रोग का घटाव प्रगट होता है और फलतः णार्थ उनके भीतर जाती है। वासा वैसोरम रोगी रोगमुक्ति लाभ करता है। Vasa vasorum-ले। नोट-विदित हो कि पदि उपयुक कालऔड यतुल लबन-१० ] स्तन में दूध की नालियों चतुष्टय किसी व्याधि के प्रारम्भ से अंत तक लिये के चौड़े भाग । ऐम्पुल्ला Ampulla-ले। जाँथ, तो औकात कुल्लियः कहलाते हैं और यदि औइ य: दम्विय -[१०] रक प्रणालियाँ । जैसे, रोग की एक नौबत वा बारी के लिए लिये जॉय, धमनी, शिरा और रनवेशिका । Blood जैसे शीतज्वर की बारी के चारों काल, तो पोकात vessels. जुज़ाइय्यः कहलाते हैं । अर्थात् जब किसो व्याधि औइ.यतुल्मनी-[अ०] ( Vesiculae semi- की नौबत वा बारी में ये चारों काल उपस्थित nales ) शुक्राशय । हों, तो उनकी औकात जुज़इयः संज्ञा है और औइ.य: लिम्झाविय्य:-[ अ० ] लिम्फ की रगें। जब सम्पूर्ण व्याधि मात्र में उपस्थित हों, तो उन्हें उरूक़ लिम्फ्राविय्यः। Lymphatics औक़ात कुल्लियः संज्ञा से अभिहित करते हैं । औइ.यः शअ रिय्यः-[अ०] रक्तकेशिकायें। उरूक अंगरेजी पय्यायशअ रिय्यः | Capilaries. (१) इब्तिदामर्ज़-Outset,Beginnऔएबीन-३० “ोएबीन"। ing, Attack, Stage of invasion. औकत्र -[१०] जिसके पाँव का अँगूठा अपनी (२) तज़य्युह वा वर्धन- Increase, पासवाली अँगुली पर बैठ गया हो। Anabesis, Stage of advance. औकात-संज्ञा पुं० [अ० वक्र का बहु.] समय । (३) इंतिहा-Height,Fastigium, वक्त्र। Acme. [ स्त्री० एक वचन ] (१) वक्त । समय । (४) इहितात-Decrease, Dec (२) हैसियत । बिसात । बिसारत । line. औकातुल् म र्ज-[अ० व्याधिकाल । रोग के समय । औकातुस्सन:-[अ०] वर्ष की चार ऋतुएँ । साल रोग के वे काल, जिनमें व्याधि विभिन्न दशा में | को चारों फसलें । जैसे—(१) रबी अर्थात् होती है। हकीमों ने उन व्याधियों के लिये जिनका । मौसम बहार, (२) सैफ़ अर्थात् ग्रीष्म ऋतु १४ फा.
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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