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________________ श्रोष्ठोपमाफल श्रोष्ठोपमाफल - संज्ञा पुं० [ सं . क्ली० ] कुँदरू । बिम्बी। कंदूरी | ओष्ठ्य - वि० [सं० त्रि० ] ( १ ) श्रठ संबन्धी | ( २ ) श्रष्ट से उत्पन्न होनेवाला । जो होंठ से निकलता हो । ओष्ठ्य योनि - वि० [सं० त्रि० ] श्रज्य शब्द से उत्पन्न | ओष्ठ्या पेशी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक पेशी विशेष ( Superior Labial.) १८४८ वि० [सं०] ईषत् उच्य | थोड़ा गरम । श्रस-संज्ञा स्त्री० [सं० अवश्याय, या उस्साव ] हवा श्रस्? इसलिये यह अधिक रोगोद्घाटक हैं । इसके पीने से यकृतावरोध का उद्घाटन होता है । यह कामला ( यक़ीन ) के लिये गुणकारी है । यदि इसकी लकड़ी का प्याला बनाकर उसमें पानी रख कर पिया जाय, तो भी यकृत में लाभ होता है । ( ख० अ० ) । सदनून - [ यू०] काकनज । सर - संज्ञा स्त्री० [सं० उपसर्य्या ]. श्रसरिया -संज्ञा स्त्री० [सं० उपसय ] जो गर्भ धारण करने योग्य हो चुकी हो, परन्तु अभी गाभिन न हुई हो । ओसरवेली-दे० "ऊस (वेली" । सारी - संज्ञा स्त्री० | देश० पश्चिमभा० ] उच्चु दी । | Ageratum cordifolium, Roxb. | ओसिस - [ यू० ] – एक वनस्पति जिसे ईंधन के काम में लाते हैं। इसकी लकड़ी प्रारम्भ में कालापन लिए होती और अंत में ललाई | लिये हो जाती है। इसकी शाखायें पतलो होती हैं और कठिनतापूर्वक कट सकती हैं । पत्त े श्रास के पत्तों की तरह होते हैं। स्वाद तिक होता है । सीन - संज्ञा पुं० [सं० की ० ] (Ossein ) प्रस्तियून -[ यू०] एक प्रसिद्ध बूटी । जयः । श्रस्वीकिया- श्रज्ञात । ओहरी -संज्ञा स्त्री० [हिं०] क्रान्तभाव । सुस्ती । थकावट । श्रोहा -संज्ञा पुं० [सं० ऊधस ] गाय का थन । ओहीरा -संज्ञा पुं० [देश० ] 'आस' नाम का वृक्ष | कना - [हिं० क्रि० ] दे० "लोकना” । में मिली हुई भाप जो रात की सरदी से जमकर और जलविन्दु के रूप में हवा से अलग होकर पदार्थों पर लग जाती है । ० - श्रवश्याय । शीत । शबनम । ड्यु - ओंकार-संज्ञा पु ं० [सं० ] ( १ ) सोहन चिड़िया । पर्या ०. ( श्रं )। (२) सोहन पक्षी का पर जिससे फौजी टोप की कलगी बनती है । नोट- जब पदार्थों की गरमी निकलने लगती है, तब वे तथा उनके आस-पास की हवा बहुत ही ठंडी हो जाती है । उसीसे श्रोस की बूँदें ऐसी ही वस्तु पर अधिक देखी जाती हैं, जिनमें गरमी निकालने की शक्ति अधिक हैं और धारण करने की कम; जैसे, घास। इसी कारण ऐसी रात को श्रस अधिक पड़ेगी, जिसमें बादल न होंगे और हवा तेज न चलती होगी । श्रधिक सर्दी- पाकर श्रीस ही पाला हो जाती I गा-संज्ञा पुं० [सं० श्रपामार्ग ] ( Achyranthes aspera ) श्रपामार्ग । लटजीरा । झाझाड़ा । चिचड़ा । ओंठ - संज्ञा पुं० [सं० श्रोष्ठ, प्रा० श्रोट्ट ] ( १ ) ओष्ठ। होंठ। ( Labium) Lip [देश० ] श्रोह । श्रोट । ( Garcinia zanthochymus, Hook.) ति - [ बर० ] Cocoanut नारियल । नारिकेल फल । ] Cocoanut tree नारियल का पेड़ | नारिकेलवृक्ष | [ अदि-[ बर० ] Cocoanut नारियल । नारिकेल फल । डिपिङ - [ बर० ] नारियल का पेड़ । नारिकेलवृक्ष । -संज्ञा पुं० [हिं०] रज्जुविशेष । एक प्रकार की रस्सी । सी - [ बर० ] Cocoanut नारियल । सी-पिङ् - बर० ] Cocoanut tree नारियल का पेड़ । सी -[ बर० ] Cocoanut oil नारियल का तेल । नारिकेल तैल ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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