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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र *8 Tags एकत्रिंशत्तम अनुयागद्वारमूत्र -चतुर्थ मूल 2883 तत्थ चोअर पण्णवयं एवं वयासी-जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसेपडि साडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराह हत्थमेते उसारिते से समए भवती ? नोइणटे समठे, कम्हा ? जम्हा संखेजाणं तंतृणं समुदय समिति समागमेणं एग पडिसाडिया निप्फजइ, उवरिमितंतुमी अछिन्ने हेट्ठिले तंमु नछिज्जइ, अन्नंमिकाले उवरिल्ले तंतु छिज्जइ अन्नंमि काले हेदिले तंतु छिज्जइ,तम्हा से समए न भवती, एवं वयंतं पंण्णवयं चोअयए एवं बयासी-जेणं कालेणं तेणं तुन्नाग दारएणं तीसे की बनाइ हुई उसे ग्रहण कर के शीघ्रता से हाथ कर फाडे तब शिष्य गुरु से यों कहने लगा कि-अहो भगवन् ! जिस वक्त वह दरजी का पुत्र उस साडी के पट को सूक्ष्म-वारीक सूत से बनाये हु को एक ही वक्त हाथ में ग्रहण कर फाडने लगा उसे समय कहना क्या ? अहो शिष्य ! यह अर्थ योग्य नहीं. अहे. भगवन् ! किस कारन यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो शिष्य ! जिस लिये संख्याते तंतू (तारा) के समुदाय के समागमकर एक पट साडिका वस्र निष्पन्न हुआ है उस में का उपर का प्रथम का एक तूंतू [ तार ] का छेदन हु विने अन्य नीचे के तार का छेदन नहीं होवे, इस लिये ऊपर 07 का संतू टूटा वह काल अलग और नीचे का दूसरा तंतू टूटा वह काल अलग. इस लिये उसे समय नहीं कहना.ऐसा सुनकर फिर शिष्य बोला-जिस वक्त वह दरजी का पुत्र उस पटसाटी का का ऊपर का 88- प्रमाण विषय 498 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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