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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 52 उसाप्पणी, 13 परियट्टा // 25 // से किं तं समए ? समए! समयस्सणं परूवणा करिस्सामि से जहा नामए-तुन्नागदारए सिया तरुणे, बलवं, जुगवं,जवाणे, अप्पायंके थिरग्गहत्थे, दड्डपाणिपाय, पासपिटुंतराउरु परिणते तल जमल परिहाणि भवाहु चमेटुग दुहण मुट्ठिय समाहत निविय गतकाए, उस्सबल समन्नागए लंघण पबण जविण वायाम समत्थे छेए दक्खेपत्तटे कुसले मेहावी निउणे निउवण सिप्पो वगए, एमं महं तीती पडिसाडियंवा पट्टसाडियंवागाहाय संयराहं हत्थमेत्तं उसारेज्जा जुग, 10 पल्योपम, 11 सागरोपम, 12 उत्सर्पनी, 13 अवसपनी, 14 पुद्गल परावर्त // 35 // अहो भगवन ! समय किसे कहने हैं ? अहो शिष्य ! अब में समय की प्ररूपना करता हूं तथा दृष्टान्तदरजी का पुत्र तरुण अवस्था वाला, शरीर कर बलवान्, सुख युक्त का जाना, योवनवंत, रोग रहित. स्थिर संघयन का धारक, हाथ पां। जिसके द्रढ-मजबूत हो. ऐसे ही पृष्ट पृष्टान्तर-हृदय उरुसपल पर्ण हो तल वृक्ष के युगल समान वर्तुलाकार स्कन्ध हो. नगर की भांगल समान भुजा हो. लोह के मुदुल मुष्टीकर फिरा कर मजबुत निवड शरीर किया हो, हृदय के बलकर प्रतिपूर्ण हो किसी में प का उल्लंघन प्रल्लंघन करने में समर्थ हो, छेदज्ञ-प्रयोग का जान. प्रतिवृक्ष कुशल हो मेधावी पंडित हो, निपुण हो सिल्पोपग्राही हो, इस प्रकार का दरजी का पुत्र एक बडी वस्त्र की साडी सूक्ष्म मृत * प्रकाशक-राजाबइदुरबाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* / For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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