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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir अनुनादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पडि साडिए एवा पट्ट साडिया एवा ज्वारले तं तुछिन्ने से समए भवति?नो इणटे समटे __कम्ह ? जम्हा संखेज्जाणं पमाणं समुदाय समिति समागमेणं एगे पम्हेछिन्नति उवरिल्ले पम्हेअरिन्ने हेदिल्ले पम्हेन छिज्जति अन्नंमिकाले पम्हेछिज्जति, अन्नंमिकाले हे हिलेपम्हे. छिजति तम्हा से समए न भवति,एथं वयंत तं पण्णवगं चोयए वयाची जेणे कालेणं ते तुम्नाग दारएणं तस्म तंतुस्स उवरिल्ले पम्हेछिन्ने से समए भवति! न भवति, कम्हा? जम्हा अगंताणं संघायाणं समुदय समिती समागमेणं एगे पम्हे निप्फजति उवरिल्ले संघाते अविसंघाते हटिल्ले संघाते नवि संघातिजति, अन्नंमि काले उवरिल्ले संघाते तार तोडे उनने में एक समय हो जाता है क्या: अहो शिष्य ! यह अर्थ भी समर्थ नहीं. अहो भगवन ! किस कारन यह अर्थ समर्थ नहीं ? अहो शिष्य ! जिस लिवे संख्याते हइ के तंतू के क समूह के समागम से वह एक तार बना है, उस में का ऊपर का हई का संतू तूटे विना नीचे का तंतू टूटता नहीं हैं. इसलिये ऊपर का तंतू तोडा वह काल अलग और नीचे का तंतू तोडा वह काल अलग इसलिये वह समय नहीं होता है. ऐसा मुन शिष्य ने प्रश्न किया अहो भगवन् ! जिस वक्त उस दरजी के पुत्र में उस सूत्र-तार का उपर का रुइ का तंतू तोडा उसे समय कहना क्या ? अहो शिष्य ! यह अर्थ समर्थ नहीं. अहो भगवन् ! सिसलिये यह अर्थ समर्थ नहीं ? अहो शिष्य ! वह रूइ का तंतू अनंत पुद्गल प्रमाणुओं केस समुदाय के मागम कर निष्पन्न हुवा है उस में *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रलादजी* For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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