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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोहपात्रमें जस्तको रखकर उसमें त्रुटिचूर्ण मिलावें । और एक प्रहर अग्नि देनेसे जसतकी भस्म तैयार होती है। इस भस्मको प्रमेहके रोगियोंको अनुपान सहित देना चाहिए ॥१२।। ७६ धातूत्थापनविधिः घृतं मधु टंकणेन मृतधातु च योजयेत् । धमेत् प्रचुराग्नयोगेन मृतधातुश्च जीवति ॥१३॥ घृत, मधु और टंकणके साथ मृतधातुका संयोजन करके प्रचुर अनि देनेसे मृत धातु जीवित होती है ।।१३।। ७७ सूतशोधनमारणे सप्त कंचुलिका सूते तद्दोपशान्तिहेतवे । निर्दोषो भवति सूत. कुमारीरसति ॥१४॥ दीपाग्नौ घटिकार्द्धन लोहपात्रे बलिप्लुते । सूतो भस्म भवेत् कृष्णः लोह (क) कौतुककारक: ॥१५॥ पारदमें सात कंचुलिका दोष होते हैं । पारदको कुमारी रसमें मर्दन करनेसे उन दोषों की निवृत्ति होती है और पारद निर्दुष्ट . होता गन्धकसे विलिप्त लोह पात्रमें शुद्ध पारदको रखकर अर्द्ध घटिका पर्यन्त दीपाग्नि देनेसे आश्चर्य जनक कृष्ण वर्णकी पारद भस्म होती है ॥१४-१५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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