SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७३ नागमारणम् www.kobatirth.org ३३ ७५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्ष्माणि नागपत्राणि कारयेच्च भिषग्वरः । शुष्कापामार्गपत्रेषु छगणद्वयसम्पुटे ||९|| श्वेतवर्ण भवेन्नागं चाग्नियोगेन तत्क्षणान् । अनुपानेन तद्देयं भवेत् देहबलं यथा ॥ १० ॥ उत्तम वैद्यको नागके सूक्ष्म पत्र बनवा कर उसको शुष्क अपामार्ग पत्रों में रख कर दो उपलोंके संपुटमें अग्नि देना चाहिए । इस प्रकार के अग्नि योगसे तुरंत श्वेत वर्णकी नाग भस्म तैयार हो जाती है । इस भस्मको देह बल अनुसार अनुपान के साथ देना चाहिए ||९-१०॥ ७४ नागप्रशंसा नागो हि नागशतमेकवलं ददाति व्याधिं विनाशयति चायुः बलं करोति । प्रधानधातोरपि बंगराजात् भुजंगराजो हरते च मृत्युम् ॥११॥ नागभस्म का सेवन करनेसे सो हाथी के समान बल प्राप्त होता है, व्याधिका नाश होता है तथा आयुष्य और बलकी वृद्धि होती है । बंगके प्रधान धातु होने पर भी नाग ही मृत्युको दूर करनेमें समर्थ है || ११ ॥ जस्तमारणम् उपयोगश्च oreपात्रे क्षिपेत् जस्तं त्रुटिचूर्णं ततः परम् । यामाग्निना भवेत् भस्म प्रमेहे तं च दापयेत् १२|| For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy