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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ शुद्धाशुद्धपारदसेवनलाभालाभौ गुंजा तस्य निजानुपानसहितो रोगानशेषान् जयेत् । मेहान् जन्तुविकारकुष्ठ कृशतां जीर्णज्वरं सत्वरम् । वर्षान जरां निहन्ति पलितं मृत्युं च मारौस्त्रिभिः पण्ढानां वृषतां करोति सहसाधिक्यं कलक्ष्मीप्रदम् ॥१६॥ एक गुजा प्रमाण पारद भस्म अपने अपने अनुपानके साथ देनेसे सभी रोगोंका शमन करती है । विविध प्रकारके मेह, जन्तुविकार, कुष्ठ, कृशता और जीर्ण ज्वरको शीघ्र दूर करती है । छ मासमें जरा और तीन मासमें पलित तथा मृत्युको दूर करती है । पंढको वृष बनाती है, परन्तु सहसा अधिक मात्रामें सेवन करनेसे कुष्ठादि रोग उत्पन्न करती है ॥१६॥ संस्कारहीनं खलु सूतराज यः सेवते तस्य करोति रोगम् । देहस्य नाशं विदधाति नूनं कुष्ठादिरोगं जनयेत् नराणाम् ।।१।। संस्कारहीन पारदका सेवन करनेसे विविध रोगोंकी उत्पत्ति होती है, देहका नाश होता है और कुष्ठ आदि रोग उत्पन्न होते है ॥१७॥ ७९ अभ्रकमारणम् अर्कक्षीरे दिनं पिष्ट्वा चक्राकार तु कारयेत् । वेष्टयेदर्कपत्रैश्च गजपुटेऽग्निना दहेत् ॥१८|| पुनमा पुनः पाच्यं सप्तवार पुन पुनः । म्रियते नात्र संदेहो चानुपानेन दापयेत् । १९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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