SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NRN ४२ आकृति निदान विजातीय द्रव्य सिर्फ गलेमें भाकर जमा हो जाना है। इससे गलेकी लम्बाई बढ़ने लगती है, और कंधा सिकुड़ने लगता है। मैं इस बातको दुहराना चाहता हूँ कि जिसका झुकाव फेफड़ेबाली बीमारीकी ओर रहता है वह प्रायः पहले फूला रहता है और उसका ऊपरी भाग दबासा रहता है । हमें इस रोगके आरम्भहीसे-विशेषकर बच्चोंके सम्बन्धमे-जड़ काटनेका यन्त्र करमा चाहिए। जिन बच्चोंका सिर बड़ा होता है ( तस्वीर नं० ३७, ३८, ४६ और ५१) अर्थात् जिन बच्चों में कंठमालाका रोग होता है उनमें क्षय रोकके कीटाणु भी होते हैं। यह कीटाणु या तो उन्हें अपने माता पितासे, जिनमें बादीपन रहता है, मिलते हैं या गलत तरीकेसे खिलाने पिलाने अथवा उनके जीवन के पहले कुछ महीनों या पहले कुछ सालों में दवाइयोंके देनेसे उत्पन्न साधारणतः बच्चेका शरीर विजातीय द्रव्य बाहर निकालनेकी चेष्टा करता है। उसीसे अक्सर उन्हें सरदी और खांसी होती रहती है । यदि किसी बच्चोको सरदी और खांसी बराबर हो या बहुत दिनोंतक जारी रहे तो समझना चाहिये कि शायद वह क्षयरोगसे पीड़ित है। युवा शरीर भी इसी प्रकार विजातीय द्रव्य बाहर फेकनेकी चेष्टा करता है। बादीपन सामनेकी ओर रहनेपर शरीर प्रायः बहुत दिनोंतक विजातीय द्रव्य बाहर निकालने में सफल रहता है। इस प्रकारके बादीपनवाले लोग For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy