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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति-निदान क्या है क्षय रोगसे पीड़ित होनेपर भी बहुत दिनोंतक जीवित रहते हैं। पर बगलकी ओर या खासकर पीठकी ओर बादीपनवालों में प्राण शक्ति बड़ी शीघ्रतासे कम हो जाती है जिससे वे बड़ीबड़ी बीमारियों का मुकाबिला नहीं कर सकते । बदन कभीकभी प्राय: घाव, नासूर, फोड़ा, फुन्नी और पीठ तथा छातीमें जहरबादके द्वारा विजातीय द्रव्यको निकालनेकी चेष्टा करता है। यदि इन रोगों को चिकित्सा ठीक तरहपर की जाय तो शरीरको कुछ न कुछ आराम अवश्य पहुँचता है, क्योंकि बहुतसा सड़ा गला पदार्थ शरीरसे पीबके रूप में निकल जाता है। पर जिनमें जोवनी-शक्ति कम रहती है उनके शरीरमें विजातीय द्रव्य सिकुड़कर छोटे छोटे ढेलोंकी शकलमें बन जाता है और विजातीय द्रव्यके यही छोटे-छोटे ढेले फेफड़ेकी गिल्टी या गांठे कही जाती हैं। इन्हें एक प्रकारके फोड़े समझना चाहिये जो उस समयतक पके नहीं हैं। यह गिल्टियाँ प्राणशक्तिकी कमीर ही पैदा होती हैं। - ऐसी गिल्टियोंसे कोई दर्द नहीं पैदा होता । इससे साधा. रणतः रोगीको इस बातका ध्यान भी नहीं होता कि उसकी दशा कैसी गम्भीर है । शारीरिक शक्तियोंका ह्रास तो दिखलाई पड़ सकता है लेकिन उससे शरीरमें कोई पीड़ा नहीं होती। इसलिये किसीके ध्यानमें भी वह बात नहीं माती कि मौत कैसी तेत्रीसे उसकी ओर बढ़ती आ रही है। अन्य सब प्रकारकी सूबनें भी इसी तरह पैदा होती हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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