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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकृति निदान क्या है ४१ सीधा कंधे और गले से आरंभ होता है ( तस्वीर नं० ३८ ) । इस तरह सड़ा गला विजातीय द्रव्य पहले नीचे से ऊपर की ओर जाता है और तब ऊपर से नीचे की ओर आकर भीतरी अंगों में अपना द्रव्य नीचे की ओर आता घर करता है । जब विजातीय है तो उसका पहला आक्रमण साधारणतः फेफड़ों के होता है । अग्रभागपर साधारणतः यह देखा जाता है कि क्षयरोगके शिकार होनेवाले युवावस्था में मोटे ताजे और तगड़े होते हैं। उनको उस दशा में भी आप देख सकते हैं कि उनके ऊपर की ओर विजातीय द्रव्यका F बड़ा दबाव पड़ रहा है और पेटमें गांठेंसी पड़ रहीं है । उस समय उनका चेहरा लाल और चमकदार होता है। धीरे-धीरे उनका चेहरा चौकोर होता जाता है। तस्वीर नं० ३७, ३८ और ३६), बादको उनका मुँह कभी-कभी, विशेषतः निद्राकालमें, बंद नहीं रहता । आरम्भ में यह बात ध्यानमें नहीं आती पर धीरे-धीरे दोनों ओठोंके बीच की दूरी बढ़ती जाती है। भीतरसे नाक कुछकुछ सूजने लगती है और नाक तथा फेफड़े में सरदीका प्रभाव दिखलाई देने लगता है । नाकके भीतर कभी-कभी कालापन भी आ जाता है, जो बीमारीके बढ़नेका चिह्न है। जबतक शरीर में शक्ति रहती है तबतक नाक बढ़ती जाती है फिर वह पतली विशेष करके बीचवाली हड्डीके पास पड़ती जाती है । तब दिन-दिन दशा चिन्तनीय होती जाती है। बहुत बार सिरपर बिलकुल प्रभाव पड़ता, क्योंकि नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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