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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 101 समाप्त कर सबको पवित्र धार्मिक स्थान, देवालय व मंदिर निर्मित करने की स्वतंत्रता दे दी । अकबर ने अपने पूर्ववर्ती सुलतानों की धार्मिक संकीर्णता, कटुता और इस्लामी राज्य की नीति त्याग दी । उसने अपने कार्यों से धर्म निरपेक्ष राज्य स्थापित किया । इस धर्म निरपेक्ष राज्य मैं वह विभिन्न धर्मावलम्बियों को एक ही मंच पर लाने को उत्सुक और प्रयत्न शील था । इस प्रयास का परिणाम दीन इलाही हुआ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) अकबर धर्मं निष्ठ और चिन्तशील व्यक्ति था, उसे विश्व और मान जीवन - के गूढतम रहस्यों को जानने तथा निरन्तर समझने की अतृप्त पिपासा थी, अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति की अनूठी जिज्ञासा थी तथा निरन्तर सत्यान्वेषण करने की अलौकिक प्रवृत्ति भी थी । इसी से बदायूंनी ने भी लिखा है कि - बहुधा अकबर उष्णाकाल में फतेहपुर के राज भवन के समीप एक प्राचीन भवन के निर्जन भाग में पड़े एक प्रस्तर खण्ड पर घण्टौ अकेला का दार्शनिक तथ्यों और जीवन के निगूढ़ रहस्यों पर विचार किया .. करता था । * २ विभिन्न धर्मो के सभी सिद्धान्तों और तत्वों को जानने की उसमें अपूर्व उत्कंठा थी । अकबर की धार्मिक नीति और विचार उसके इस जन्मजात आत्मीय अंकुर व अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा का प्रस्फुटन था । इसी से वह कमेठ राजकीय जीवन में सत्यान्वेषण के सतत प्रयोग करता था, जिसका परिणाम दीन इलाही के रूप में उदय हुबा । (५) इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों की विशद जानकारी के लिये अकबर ने १५७५ मैं इबादत खाना निर्मित किया और वहां रेखा, सयदों और आलिमों के धार्मिक वाद विवाद और गोष्ठियां सुनी । हमालदत जाने की स्थापना की तो उसने इस्लाम के सच्चे सिद्धान्तों को समझने के लिये थी लेकिन इसका परिणाम उल्टा ही निकला क्योंकि इस्लाम के सिद्धान्तों को समझने की 2- AL-Badaoni Trans. by W.H. Lowe Vol. II P., 203. For Private And Personal Use Only wo
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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