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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति 100 सहिष्णुता, हिन्दू मुहिम एकता और समन्वय पर व्यक्ति और वात्मा की अभिव्यक्ति पर अधिक बल दिया। इससे अकबर के उपार धार्मिक विचारों और नवीन प्रयोर्गों के लिये मार्ग प्रशस्त हो गया । धीरे धीरे इस नवीन वातावरण के प्रभाव में उसका हृदय समी वगा और माँ के प्रति उदार और सहिष्णु होता गया जो उस युग की प्रमुख मांग थी। अकबर ने इस मांग की पूर्ति करने के लिये बौर सभी धां का समन्वय करने के लिये दीन इलाही की स्थापना की । (३) - अदबर से पूर्व इलाम राज्य धर्म के श्रेष्ठ पद पर प्रतिकित था । जिसके परिणाम स्वरुप राज्य की प्रजा मुसलमानों और गैर मुसलमानों मैं विपकत हो गयी थी। गैर - मुसलमानी अथवा हिन्दुओं के लिये - साम्राज्य के सभी उच्च पदों के व्दार बन्द थे । किन्तु उपार चेता, विवेक ! शील, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ, अकबर इस नीतिपर्ण व्यवस्था का अन्त कर। देना चाहता था । इस लिये उसने ऐसे धर्म बौर नीति को अपनाना चाहा जिससे उसकी प्रजा के एक बहुत बड़े वगै हिन्दुओं के साथ सइ व्यवहार हो सके, उनके पा को हानि न हो, ऐसी धार्मिक नीति और प्रशासकीय कार्य। हो जिससे उसकी आध्यात्मिक पिपासा तो शान्त हो ही, पर उसकी - समस्त प्रजा सार्वजनिक रूप से प्रभावित हो सके वार सब को पद व धर्म की समानता प्राप्त हो सके । इस लिये अकबर ने प्रशासन और सेना में - विभिन्न धमाकास्वियों को ऊंचे ऊंचे पदों पर क्लिा किसी - मेद माव! के नियुक्त किया । राज्यपाल या प्रान्तीय सूबेदार, मनसबदार, वजीर आदि ऊंचे ऊंचे पर्दा पर राजपूतों व अन्य हिन्दुओं को नियुक्त किया गया । इस कार्य से राज्य की दृढ़ता और स्थायित्व के लिये वह समी जातियों, पाँ बार वगााँ के लोगों का सहयोग और सद्भावना चाहता था । अकबर ने बलात धर्म परिवर्तन कर इस्लाम के प्रसार का निमेष - किया वीर तीर्थ यात्रा कर, जजिया कर व अनेक अनुचित करों को - + + + For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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