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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० २- ॥१०७२। २-4 -CR-CACA पाडीने आंख लाल करीने अनुचित वचन बोलवां, एथी विपरीत प्रसन्न थइने रागनां वचन बोलवां, कर्तुं छे के रुटस्स खरा दिट्ठी उप्पलधवला पसन्नचित्तस्स । दुहियास ओमिलायइ गंतुमणस्मुस्मुआ होइ ॥१॥ क्रोधीने आंख लाल होय, अने प्रसन्न थाएलानी कमळ जेवी धोळी होय, दुःखी जीवनी मींचायला जेवी होय, अने जवा + सूत्रम् इच्छनारनी खांख उत्सुक होय. MU१०७२॥ से भि० अहावेगइयाई रूवाई पासइ, तं० गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा कटुकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा चित्तक० मणिकम्माणि का दंतक पत्तछिजकन्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाई अन्नयराई० विरू० चक्खुदंसणपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए, एवं नाय वा जहा सद्दपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमाचि ।। (मू. १७१) पञ्चमं सत्तिकयं ।। २-२-६।। ते भाव साधु गोचरी विगेरेना कारणे बहार फरतां जुदी जुदी जातिनां रुपो जुए, तेमां मोह न करे, हवे ते रुपानी विगत बतावे छे. फुलो विगेरेथी साथीओ विगेरे मुंथीने बनाव्यो होय, तथा वस्त्र विगेरे वींटीने पुतळो विगेरे बनावेल होय, तथा अमुक चीजो पुरीने पुरुष विगेरेनो आकार बनाव्यो होय, तथा कपडांना ककडा शीवी ने कांचळी विगेरे बनावे-ते संघातिम छे, लाकडानां रथ विगेरे काष्ट कर्म छे. तथा पुस्तको, लेपर्नु काम, चित्रो, तथा जुदां जुदां मणि रत्नोवडे सायीा विगेरे बनावेल होय, हाथीदांतनी पुतळी विगेरे होय, पांदडां छेदीने आकार बनाव्यो होय, आ प्रमाणे अनेक मनोहर वस्तुभो देखीने आंखने प्रसन्न करवानी इच्छाथी न जाय, अर्थात् जयूँ तो दूर रहो पण मनमां अभिलाषा पण देखवानी न करे, तथा पूर्वे शब्दोना अधिकारमा बताव्यु ते R For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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