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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१०७३ ।। www.kobatirth.org प्रमाणे अहीं पण योज के आलोक संबंध के परलोक संबंधी सांभळं होय के न सांळ होय, देख्धुं होय के नहि देख्युं होय, तो ते ते दरेक जातिना रुपमां राग गृद्धता, मोह के तल्लीनता न करवी, जो रुपमां राग विगेरे करशे तो आ लोकमां मनुष्य विगेरेथी अने परलोकमां परमाधामीना मार पडशे. परक्रिया नामनुं छटुं अध्ययन. रुप अध्ययन कहने पर क्रिया नामनुं छठु अध्ययन कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयां वे अध्ययनमां रागद्वेपनी उत्पत्तिनां निमित्त मधुर शब्द अने रुपनो निषेव बताव्यो, तेनेज अहीं बीजे प्रकारे कहेशे, आवे संबंधे आवेला अध्ययनना नाम निष्पन्न निक्षेपामां परक्रिया एवं आदान पदवडे नाम है, तेमां प्रथम पर शब्दनो छ मकारनो निक्षेप अडधी गाथावडे कहे छे. कं परकिक त १ दन्न २ माएस ३ कम ४ बहु ५ पहाणे ६ । 'पर' शब्दो छ प्रकारे निक्षेगे छे, नाम स्थापना सुगम है, भने द्रव्यादि पर पण एकेक छ प्रकारे हे. १ तत्पर २ अन्यपर ३ आदेशपर ४ क्रमपर ५ बहुपर ६ प्रधानपर है, तेमां प्रथम द्रव्यपर तेजरुपे वर्त्तमानां विद्यमान होय, जेमके एक परमाणुथी बीजो परमाणु जुदा छे अन्यपर ते अन्यरुपे पर छे, जेमके एक वे अणुवालो, ऋण अणुवाको तेमज वे अणुवाळो एक अणुवालो के ऋण अणुवाळो छे, आदेशपर ते आदेश (आज्ञा) अपाय छे ते, जेमके कोइ कार्यमां मजुर विगेरेने रखाय छे ते आदेशपर छे, पण 'क्रमपर' तो चार प्रकारे हे, तेमां द्रव्यथी क्रम पर ते एक प्रदेशिक द्रव्यथी वे प्रदेशिक द्रव्य छे For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥१०७३॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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