SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ___ अने परलोकमां परमाधामी (जमडा) ना मार खावा पडशे एम विचारीने मोह छोडे, अथवा आ लाक के परलोकना खीना आचा0 के देवीना शमोमां न ललचाय, तथा तेवा शब्दो सांभळ्या होय, के नहि, अथवा साक्षात् मळ्या होय के नहि, नो पण नेमां राग सूत्रम् IPI न करे, तेमा गृद्धता न करे, तेमां मुंझाय नहि, न तलीन थाय, अर्थात् जे कानने कबजामा राखी मधुरमा आनंद न माने, हितना ॥१०७१॥ ४ कडवा शब्दोमां खेद न माने. तेन तेनुं पूर्ण साधुपणुं छे. ॥१०७॥ जो तेम इंद्रियोने कवजामां न राखी शब्दो सांभळवा जाय, नो भण, गणवू न थाय, तथा राग द्वेष थाय, ए प्रमाणे बीजा पण आ लोक परलोक संबंधी दुःखो जाणीने विचारवा. रूप सप्तक नामनुं पांच, अध्ययन चोथु समक कहीने हवे रुप सप्तक कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. गया उद्देशामां श्रवण इंद्रिय आश्रयी रागद्वेपनी उत्पत्ति निषेधी. तेम अहीं आंखने आश्रयी निषेधशे, आ संबंधे आवेला अध्ययनना नाम नि-निक्षेपामा (रुप सप्तक एकक) नाम हे. रुपना चार प्रकारे निक्षेपा हेनाम स्थापना सुगमने छोडीने द्रव्यभाव निक्षेपा कहेवा नियुक्तिकार गाथा कहे छे. दवं संठाणाई भावी बन्न कसिणं सभावो य । [दव्वं सद्द (रूव) परिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य] || ३२४ ।। नो आगमथी द्रव्य व्यतिरिक्तमां पांचे स्थानो परिमंडळ (पूर्ण गोळो) विगेरे आकारो डे, अने भावरुष बे प्रकारे वर्णथी तथा ? स्वभावथी छे, तेमां वर्णयी बधा (पांचे) वर्णो छे अने स्वभाव रुप ते अंदरमा रहेला क्रोध विगेरेथी भापण चढावी कपाळमां सळसे A ल-%DEOALNADroom RICRORESCRICE. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy