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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० ॥८१०॥ ROCEAC-ANA छे. तेमां पण अनंतानुबन्धीना विसंयोजको छे. तेमां नारक अने देव अविरत सम्यग्दृष्टिो छे, तथा तिर्यंचो अविरत देशविरत छे. मनुष्यो अविरत देश विरत प्रमत्त अप्रमत्त छे. सूत्रम् ए बधा पण यथा संभव विशोधि विवेक वडे परिणत थयेला अनंतानुबन्धीनी विसंयोजना माटे पूर्वे कहेल करण त्रण करे छे. तेमां पण अनंतानुबन्धीनी स्थितिने अपवर्तन करतो पल्योपमना असंख्येय भाग मात्र बनावे छे. अने पल्योपमना असंख्येय भाग IM८१०॥ जेटली मोह प्रकृतिओ जे बन्धाय छे, तेने प्रति समये समावे छे. तेमां पण प्रथम समये स्तोक अने त्यार पछीना समयोमा असंख्येय गुण सङ्क्रमावे छे.ए प्रमाणे छेला समयमां बधासङ्क्रमवडे आवलिका जेटलाने छोडी बाकोनी सर्व सङ्कमावे छे.भने पछी आ-14 वलिकामा रहेल पण स्तिबुक सङ्कमवडे वेदांती वीजी प्रकृति श्रोमा सङ्क्रमावे छे.ए प्रमाणे अनंतानुबन्धो कपायो विसंयोजित थायछे. | दर्शन त्रिकनी उपशमना.-तेमां मिथ्याखनो उपशमक मिथ्यादृष्टि छ, अथवा वेदक सम्यग्दृष्टि छे पण सम्यक्त्व के सम्यग ४ मिथ्याखनो वेदक तेज उपशमक छे. न तेमां मिथ्याखनो उपशम करतो तेनु अंतर करीने प्रथम स्थितिने विपाकवडे भोगवीने मिथ्याखनो उपशम करतो, उपशांत 3 मिथ्यावी बने छे. अने उपशम सम्यगदृष्टि थाय छे. हवे वेदक सम्यग्दृष्टि जी उपशम श्रेणीने स्वीकारतो अनंतानुबन्धीने वीसं2 योजीने संयममा रहेलो आ विधिए दर्शनत्रिकने उपशमावे छे तेमां यथा प्रवृत्त विगेरे पहेला बतावेल त्रण करणोने करीने अंतर-४ करण करतो वेदक सम्यक्त्वनी पहेली स्थितिने अंतर्मुहूर्तनी बनावे छे. अने बाकीनी आवलिका मात्र बनावे छे. त्यार पछी थोडी मोडी एवी मुहर्त मात्रनी स्थिति खंड खंड करीने बध्यमान प्रकृतिओने स्थितिबन्ध मात्र काळवडे ते कर्मना दळियाने सम्यक्त्वनी 64656 For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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