SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ।।८११।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम स्थितिमां प्रक्षेप करतो आ प्रक्रियावडे सम्यक्त्वना बन्धना अभावथी अंतर क्रियमाण करेल थाय छे. मिध्याख सम्यक् - थ्याल प्रथम स्थिति दलिकने आवलिकाना परिमाण मात्र सम्यक्त्वनी प्रथम स्थितिमां स्aिgs सङ्क्रमवडे सङ्क्रमावे छे. तेमां पण सम्यक्त्वनी प्रथम स्थिति क्षीण थतां उपशांत दर्शनत्रिकवालो थाय छे. त्यार पछी चारित्रमोहनीयने उपशमावतो पूर्व माफक ऋण करण करे छे. एमां विशेष आ छे.यथा मवृत्त करण अप्रमत्त गुणस्थानेज थाय छे। अने बीजुं अपूर्वकरण तो आठमुं गुणस्थान छे. तेना प्रथम समयेज स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणि, गुणसङ्क्रम, अपूर्वस्थितिबंध, ए पांचे अधिकार साथै प्रवर्त्ते छे. तेमां अपूर्वकरणना | संख्येय भाग जतां निंद्रा प्रचलाना बंधनो व्यवच्छेद थाय छे. तेमां पण घणां हजार स्थितिनां कंडको गये छते छल्ला समयमां | वीजा भवनी नाम प्रकृतिनी त्रीस प्रकृतिना बंधनो व्यवच्छेद करे ते आ प्रमाणे छे. (१) देवगति (२) अनुपूर्वी (३) पंचेंद्रिय जाति, (४) वैक्रिय (५) आहारक शरीर अने ते (६-७) बन्नेना अंगोपांग, (८) तेजस ( ९ ) कार्मण शरीर (१०) समचतुरस्र संस्थान (११ थी १४) वर्ण गंध रस स्पर्श (१५) अगुरुलघु (१६) उपघात (१७) पराघात (१८) उच्छवास (१९) प्रशस्तविहायोगति (२०) त्रस (२१) बादर (२२) पर्याप्त ( २३ ) प्रत्येक (२४) स्थिर (२५) शुभ (२६) सुभग (२७) सुखर (२८) आदेय (२९) निर्माण (३०) तीर्थङ्करनाम तेथी अपूर्व करणना छल्ला समयमां हास्य रति भय जुगुप्साना बंधनो व्यवच्छेद थाय छे। अने हास्यादि पटकना उदयनो व्यवच्छेद थाय छे. बघा कर्मनो अप्रशस्तनो उपशम निद्धत निकाचना करवानुं व्यवच्छेद थाय छे. (टीकाना काउंसमां लख्युं छे के देशना उपशमनो व्यवच्छेद थाय छे) तेथी ए प्रमाणे असंयत सम्यग्दृष्टि विगेरेथी अपूर्वकरणना अंत सुधी सात कमेनो उपशांत मेळवाय छे. त्यार पछी अनिवृत्तिकरण छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।८११।।
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy