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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १०१०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊपनीत अपनीत वचन कंइक प्रशंसा योग्य गुण बतावी निंदा आत्मकगुण बतावे जेमके आ स्त्री सुंदर छे, पण कुलटा छे. (११) | अपनीत उपनीत वचन ते प्रथमथी उलटुं छे, जेमके आ स्त्री कुरुपा छे पण शीलवत पाळनारी सती छे. (१२) अतीत वचन कृतवान् | कर्यु. (१३) वर्त्तमान वचन करे छे, (१४) अनागत वचन 'करशे' (१५) प्रत्यक्ष वचन आ देवदत्त छे. (१६) परोक्षवचन ते देवदत्त छे, आ प्रमाणे सोळ वचनो छे, आ सोळ वचनोमां साधुने जरूर पडे, त्यारे एक वचननी विविक्षामां एक वचन बोले, ते परोक्ष वचन सुधीमां ज्यां जवं योग्य होय त्यां तेनुं बोले, तथा स्त्री विगेरे देखे छते आ स्त्रीज छे, अथवा पुरुष अथवा नपुंसक छे, जे | होय तेबुं बोले, आ प्रमाणे विचारी निश्चय करीने सत्य बोलनारो समितिवडे अथवा समपणे संयत भाषा बोले, तथा पूर्वे कलां अथवा हवे पछी कहेवाता दोषोनां स्थान छोडीने भाषा बोले, ते भिक्षु चार प्रकारनी भाषाओ जाणे, ते आ प्रमाणे (१) सत्यभाषाजात - ते यथार्थ वचन अवितथ (खरेख) बोलवु गाय होय तो गाय अश्व होय तो अश्व कहेवो. (२) एथी विपरीत ते मृषा (ठ) बोलं - एटले गायने अश्व कहेवो, अश्वने गाय कहेवी. (३) सत्यमृषा-जेमां थोडं सत्य थोई असत्य. जेमके-देवदत्त घोडा उपर बेसीने जतो होय तो उंट उपर : बेसीने देवदत्त जाय छे एम कहे. (४) बोलायेली भाषामां सत्य, जुठ के मिश्रपणुं न होय, ते आमंत्रण आज्ञापन विगेरेमां सत्य जुठ नथी ते असत्यामृषा चोथी भाषा छे, आ वधुं सुधर्मास्वामी पोतानी बुद्धिथी नथी कधुं तेथी कहे छे, के जे पूर्वे तीर्थंकर थाय, वर्तमानमां छे अने भविष्यमा यशे ते वधा तीर्थकरोए कं छे, हमणां कहे छे अने कहेशे, के आ वर्षाए भाषाद्रव्य अचित्त छे, वर्ण गंध रस फरस For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ १०१०॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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