SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा CARBASA जाणवू, ( के आम नहिज बने ) अथवा कोई साधुने भिक्षा माटे कोइ ज्ञाति के कुलमा प्रवेश करतो जोइने तेने उद्देशीने बीजा 8 साधुओ आवु बोले के आपणे खाइ लो, ते लइनेज आवशे, अथवा तेने माटे राखी मुको ते कइ पण लीधा विनाज आवशे || सूत्रम् M अथवा त्यांज खाइने अथवा खाधा विनाज आवशे, तेवु निश्चयात्मक वचन पण न बोलवू, तथा आवी वाणी न बोलवी, के राजा || C॥१००९॥ विगेरे आव्यो छेज, तथा ते नथीज आव्यो, अथवा आवेछेज, आववानो नथीज, तथा ते आवशेज, अथवा आवशेज नहि, ए प्रमाणे टू पत्तन मठ विगेरे आश्रयी पण भूत विगेरे त्रणे काळ आश्रयी योजg, ते बधानो सार आले के जे अर्थने पोते बरोबर न जाणे त्यां आगळ आ 'एमज छे' एम न बोलवू, सामान्यथी साधुने बधी जग्याए लागु पडतो आ उपदेश छे के विचारीने, सम्यग रीते निश्चय करीने अथवा श्रुत उपदेश बडे | व प्रयोजन वढे साधारण 'निश्चय आत्मक' बनीने भाषा समिति वडे अथवा रागद्वेष छोडीने सोल वचननी विधि जाणीने भाषा बोले, जेवी भाषा बोलवी ते सोळ भकारना वचननी विधिवाळी भाषा बतावे छे. सोळ प्रकारनी भाषा. (१) एक वचन जेमके 'वृक्षः' (२) द्वि वचन 'वृक्षौ' (३) बहु वचन 'वृक्षाः' आ त्रण वचन थया. त्रण प्रकारना लिंग आश्रयी कहे छे. (४) स्त्री वचन वीणा, कन्या, (५) ध्रुवचन घटः, पटः (६) नपुंसक वचन पीठं, देवकुलं (देवल) अध्यात्न वचन. (७) आत्मामा रहेलं ते अध्यात्म (हृदयमा रहेलु) तेना परिहार करवावडे अन्य बोलवा जतां बीजुंज (खरु) सहसात्कारे बोलाइ जाय. (८) उपनीत वचन ते प्रशंसानुं वचन जेम सुंदर स्त्री (९) तेथी उलटुं अपनीत निंदाचाळ वचन कुरुपवाळी स्त्री. (१०) - O- I क व Recret .. For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy