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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | वाळां, चय, उपचय विगेरे विविध परिणाम धर्मवाळां छे, एबुं तीर्थकरे कहेल छे, अहीं वर्ण विगेरे गुणो बताववाथी शब्दनु मूर्त आचा पिणुं बताव्यु, पण अन्यलोक एवं माने डे, के 'शब्द आकाशनो गुण' छे, ते आकाशने वर्ण विगेरे नथी माटे शब्द रुपी नहि सूत्रम् ॥१०११॥ * पण अरुपी छे, तेम जैनो मानता नथी, तथा चय-उपचय धर्म बतावधाथी शब्दनु अनित्यपणु बताव्यु; कारण के शब्दद्रव्योर्नु ॥१०११॥ विचित्रपणुं सिद्ध थाय छे. हवे शब्दोनुं कृतव प्रकट करवा कहे छे. से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा पुचि भासा अभासा भासिजमाणी भासा भासा भासासमयवीइकता च णं भासिया भासा अभासा ।। से भिक्खू वा० से जं पुण जाणिज्जा जा य भासा सच्चा १ जा य भासा मोसा २ जा य भासा सच्चामोसा ३ जा य भाषा असचऽमोसा ४, वहप्पगारं भासं सावज्ज सकिरियं ककसं कड़यं निरं फरुसं अण्हयकरि छेयण करि भेयणकरि परियावणकरि उद्दवणकरि भूओवघाइयं अभिकंख नो भासिज्जा ॥ से मिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा, जा य भासा सच्चा सहुमा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूओवघाइयं अभिकख भासं भासिज्जा ।। (मु०१३३) ते भिक्षु आ प्रमाणे शब्दने जाणे, के भाषा द्रव्य वर्गणाओनो वाक्योग निसरवार्थी पूर्वे जे आ भाषा हती, ते वाकयोगबडे | निसरवाथीज भाषा कहेवाय छे, आ कहेवाथी तालवू ओठ विगेरेना व्यापारथी पूर्वे जे शब्द नहोता, ते ते उत्पन्न करवाथी खुलेखुलं || (प्रकट) कृतक (बनाववा) पणुं मूचव्यु छे. जेम माटीना पिंडमां प्रथम घडो नहातो, ते कुंभारे प्रयोजन आवतां दंडचक्रवडे घडाने 18 वनाव्यो, तेम ते भाषा बोलाया पछी नाश पामती होवाथी शब्दोनुं बोलाया पछीना काळमां अभाषापणुं , जेमके घडो फुटवाथी 8 For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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